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koutilya ke saptang shidhant in hindiकौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत

कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत महान राजनैतिक विचारक कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के अध्याय 6 में सप्तांग सिद्धांत का वर्णन किया है। राज्य की उत्पति के संबंध में वह सामाजिक समझौता के सिद्धांत का समर्थन करते है।  राज्य के अभाव से अराजकता, अव्यवस्था, असुरक्षा और अशांति जन्म लेती है। इसलिए वह राज्य की उत्पति के आधार को समझौता मानते है। राज्य का उद्देश प्रजा की रक्षा एवं उनके कल्याण को सुनिश्चित करना है। राज्य के सात प्रमुख तत्व की तुलना वह शरीर के अंगों से करते है कौटिल्य के सप्तांग  राजा (सिर ) अमात्य (आंखे) जनपद (जांघ) दुर्ग (हाथ) कोश (मुख) दण्ड (मस्तिष्क) मित्र (कान) राजा कौटिल्य ने राजा को राज्य का सर्वोच्च अंग माना है। राजा का कर्तव्य राज्य की सुरक्षा एवं जनकल्याण करना है  राजा को विभिन्न विद्याओ से संपन्न, चरित्रवान, योग्य, दूरदर्शी और गुणवान होना चाहिए। अमात्य   अमात्य से आशय है मंत्री या प्रशासन के अधिकारियों से है राजा को योग्य अमात्य की नियुक्ति करनी चाहिए। राजा को कोई भी निर्णय अमात्य के परामर्श से लेना चाहिए। जनपद जनपद से आशय जनयुक्त भूमि से है। जनपद के ...

महात्मा गांधी और अंबेडकर के विचारों में अंतर और समानताएं को स्पष्ट कीजिए ?

महात्मा गांधी और अंबेडकर के विचारों में अंतर और समानताएं को स्पष्ट कीजिए ? महात्मा गांधी और बी. आर. अंबेडकर दोनों का साध्य तो एक था किंतु दोनों के अलग-अलग साधन थे। समानताएं दोनों ही महान विभूतियों ने दलितों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए उनके प्रति समर्पित थे। दोनों ही कल्याणकारी एवं समानता परक समाज का निर्माण करना चाहते थे। दोनों ही स्त्री शिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे। अंतर गांधीजी वर्ण व्यवस्था का समर्थन करते थे। तथा वह इसे सामाजिक संगठन की स्वाभाविक नियम मानते थे। जबकि अंबेडकर जी  वर्ण व्यवस्था के घोर विरोधी थे। गांधी वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत वंशानुगत व्यवसाय का भी समर्थक करते थे। क्योंकि यह अवस्था जीवन को जीने की राह सिखाती है। लेकिन अंबेडकर जी इसको स्वीकार नहीं करते तथा उन्होंने अपनी पुस्तक व्हू वेयर द शुद्राश में वर्ण व्यवस्था को अवैज्ञानिक, अव्यावहारिक एवं अन्यायपूर्ण बताया है। गांधीजी अस्पृश्यता निवारण के लिए सवर्णों तथा पूंजी पतियों का ह्रदय परिवर्तन को आवश्यक मानते है। जबकि अंबेडकर समाज में बदलाव के लिए संघर्ष को उचित मानते हैं। गांधीजी विकेंद्रीकृत लो...