प्रयोजनवाद क्या है प्रयोजनवाद का सिद्धांत और शिक्षा प्रयोजनवाद के जनक, रॉस के अनुसार प्रयोजनवाद,प्रयोजनवाद के रूप ,प्रयोजनवाद व शिक्षा,प्रयोजनवाद व शिक्षण विधियां,प्रयोजनवाद का मूल्यांकन

प्रयोजनवाद का सिद्धांत

यह विचारधारा सभी विचारधाराओं में अधिक महत्वपूर्ण है

प्रयोजनवाद के जन्मदाता चार्ल्स पियर्स है।

  • इनके अलावा अन्य विचारकों ने भी इस विचारधारा पर मानव जीवन के व्यवहारिक पक्ष तथा अनुभव युक्त ज्ञान पर विशेष बल दिया है। जॉन डीवी और किलपैट्रिक ने शिक्षा को प्रयोजन वादी स्वरूप प्रदान करके नया  रूप प्रदान किया है। प्रयोजनवाद ऐसे विचार पर विश्वास करता है जो सभी प्रकार के मूल्य, आदर्श विचारों एवं निर्णय की सत्यता उनके निष्कर्ष के आधार पर निर्भर करते हो।

प्रयोजनवाद क्या है

Pragmatism in hindi 

  • प्रयोजनवाद pragmatism मुख्य रूप से ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ प्रैक्टिकल या हिंदी भाषा में इसका अर्थ व्यवहारिक है

प्रयोजनवाद को व्यवहारवाद भी कहते हैं

प्रयोजनवाद और सत्यता

  • प्रयोजनवाद जीवन की व्यवहारिकता और आचरण पर अधिक बल देता है और यह मानता है कि जो प्रयोग में लाया जा सके या जिसकी जांच की गई है वही वास्तविक और सत्य है तथा हम इस सिद्धांत के अनुसार सत्यता या वास्तविकता को गहनता से समझ पाते है।

रॉस के अनुसार प्रयोजनवाद

  • एक मानवीय दर्शन है जो यह मानता है कि मनुष्य अपने जीवन की अवधि में अपने मूल्यों का निर्माण करता है एवं उसके द्वारा अनुभव किया गया ज्ञान सदैव निर्माण की अवस्था में रहता है। अर्थात मनुष्य अपने अनुभव के परिणाम स्वरूप ज्ञान पाता है।

प्रयोजनवाद के रूप 

  • प्रयोजनवाद सत्य और वास्तविकता को मापता है। यह वह सिद्धांत है जो समस्त विचारो की प्रकृति की सत्यता और वास्तविकता को जांच कर उसके परिणाम को संतोषजनक पाता है उसे सत्य मानता है।
  • उदाहरण के लिए कोई कार्य जो चोर को व्यवहारिक लगता है वह पुलिस के लिए व्यावहारिक नहीं होता। इसमें क्या व्यवहारिक है और क्या संतोषजनक इसको हमने पिछले उदाहरण के अनुसार समझा अर्थात चोर द्वारा किया गया काम व्यवहार पूर्ण नहीं है इसलिए यह संतोषजनक नहीं माना जा सकता। तथा इसी अर्थ को समझने के लिए कुछ धारणाएं हैं इन्हीं को प्रयोजनवाद के रूप से जाना जाता है।

प्रयोगवाद प्रयोजनवाद क्या है

  • किसी वस्तु या विचार को प्रयोग करके उसका निष्कर्ष प्राप्त होता है वही सत्य कहलाता है। जिसे प्रयोगवाद प्रयोजनवाद कहा जाता है।

नामरूप वादी प्रयोजनवाद क्या है?

  • इसके अनुसार प्रयोग के आधार पर प्राप्त सभी परिणाम सदैव वास्तविक होता है।

मानवतावादी प्रयोजनवाद क्या है?

  • यह सबसे लोकप्रिय विचारधारा है इसके अनुसार प्रकृति को पूर्ण रूप से समझने और संतुष्ट करने वाली वस्तु या विचार वास्तविक या सत्य है। मानवता वादियों का कहना है कि जो मानव के उद्देश्यों और इच्छाओं को पूरा करके उन्हें संतोषजनक अनुभूति और जीवन के विकास की ओर अग्रसर करती है वही सत्य है।

जीव विज्ञान वादी प्रयोजनवाद 

  •  इसके बारे में सबसे अधिक चर्चित व्यक्ति जॉन डीवी है उनके अनुसार प्रयोजनवाद की जांच मनुष्य अपने अनुकूल वातावरण और विचारों के परिणाम स्वरूप करता है।

प्रयोजनवाद के सिद्धांत 

  • संसार निरंतर परिवर्तनशील है और सदैव परिवर्तन की क्रिया से गुजर रहा है तथा  कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है।
  • संसार अनेक तत्वों से मिलकर बना है और संसार की प्रकृति अनिश्चित है।
  • आदर्श और मूल्य शाश्वत नहीं है प्रकृति के समय के सापेक्ष परिवर्तनशील है।
  • मानव सदैव परिवर्तनशील है तथा प्रकृति के साथ उसका भी विकास होता है।
  • प्रगति या कार्य स्वयं नहीं होते उसके लिए प्रयास करना पड़ता है। अर्थात ज्ञान क्रिया का प्रतिफल है जिसकी रचना अनुभव के आधार पर होती है।

प्रयोजनवाद व शिक्षा

  • शिक्षा एक सामाजिक कार्य है जो सामूहिक रूप से समाज के लोगों को स्वतंत्र विचारों और चिंतन करके सीखने की चेतना उत्पन्न करता है।
  • बालक का वास्तविक जीवन अनुभव 
  •  मनुष्य अपने जन्म से सीखने की क्षमता रखता है। तथा सीखने की क्षमता उसको ज्ञानेंद्रियां और अनुभव के आधार पर प्राप्त होती है बालक स्वयं अपनी क्रियाओं और अनुभव से सीख कर ज्ञान प्राप्त करता है। तथा यह ज्ञान समय के अनुसार पुनर निर्माण की प्रक्रिया में निरंतर प्रगति करता है।
  • बालक का महत्व  शिक्षा में शिक्षक और बालक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। बालक अनुभव के आधार पर शिक्षा ग्रहण करता है। विचारकों का मानना है कि शिक्षा बालक के लिए है ना कि बालक शिक्षा के लिए।
  • शिक्षा की लोकतांत्रिकता :- बालकों को किस स्वभाव से सीखना और कौन सी विचारों को रखना है आदि प्रक्रिया को स्वतंत्र होना चाहिए जिससे बालकों में सीखने की चेतना में बाधा ना आए। जैसे-जैसे बालक अपने विचारों की स्वतंत्रता के अनुसार चिंतन करेगा उससे बालक के चरित्र और व्यक्तित्व का विकास होगा।

प्रयोजनवाद की शिक्षण विधियां


  • सीखने की उद्देश पूर्ण प्रक्रिया का सिद्धांत
  • यह प्रथम सिद्धांत है जिसके अनुसार बालक अपने गुरु के समक्ष बैठकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। लेकिन बालक को क्या सीखना है यह बालक के अनुसार होना चाहिए। तथा दूसरों के द्द्वारा दिया गया ज्ञान प्राप्त नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे स्वयं की रचनात्मक कलाओं का विकास नहीं हो पाता इसलिए बालकों को स्वयं सीखने की प्रक्रिया में सहायता प्रदान करनी चाहिए तथा उनकी इच्छाओं और रुचियां के अनुसार ही पढ़ाना चाहिए। क्या सीखना है यह बालक पर निर्भर होना चाहिए।
  • क्रिया का अनुभव द्वारा सीखने का सिद्धांत
  • बालक स्वयं अपने मूल्य और आदर्शों का निर्माता होता है। इसलिए बालक को अपने अनुभव के प्रयोगात्मक आधार पर सीखना चाहिए जिससे उसमें नई अवचेतना का निर्माण हो सके। जैसे जैसे बालकों के विचार निर्माण में गतिशीलता और लचीलापन आता है वैसे वैसे उनके व्यक्तित्व मैं विकास होता है।
  • सीखने की प्रक्रिया का एकीकरण करने का सिद्धांत
  • इसके अनुसार सीखना अखंड होना चाहिए अर्थात किसी भी विषय की जानकारी को विभिन्न खंडों में बांट कर उनका अध्ययन करना चाहिए तथा इन विषयों के अध्ययन के उपरांत सीखी गई बातों का एकीकरण करना चाहिए। जिससे अन्य विषयों के साथ संबंध स्थापित किया जा सके। इसलिए सीखने की प्रक्रिया एकीकरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तथा बालक अपनी रुचि और योग्यताओं के चयन अनुसार पढ़कर  सामूहिक चर्चा और वास्तविक परिस्थितियों का अध्ययन करना चाहिए।

प्रयोजनवाद एवं पाठ्यक्रम

  • उपयोगिता का सिद्धांत
  • उपयोगिता के सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के लिए पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जिससे वर्तमान और भावी जीवन की वास्तविक समस्याओं को दूर करने में सहायता दे। पाठ्यक्रम में भाषा, स्वास्थ्यय, विज्ञान, गणित, तर्कशास्त्र, इतिहास, भूगोल, व्यायाम, कृषि विज्ञान, महिलाओं के लिए गृह विज्ञान आदि विषयों को स्थान दिया जाना चाहिए। इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश है कि कैसे मानव ज्ञान की सहायता से प्रगति करता हैै।
  • रुचि का सिद्धांत
  • प्रयोजनवादियों के अनुसार पाठ्यक्रम की रचना बालकों की रूचि के अनुसार करनी चाहिए यानी कि प्रारंभिक शिक्षा में उन विषयों को रखना चाहिए जो बालकों में चेतना जागृत करें जैसे एबेकस जैसे गिनना, लिखना, ड्राइंग आदि।
  • बालक के अनुभव का सिद्धांत
  • इसके अनुसार बालकों को स्वतंत्र रूप से अनुभव करके ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। बालक सामान्य विषयों के साथ साथ सामाजिक क्रियाओं एवं नैतिक गुणों का भी अनुभव करें, जिससे उसके व्यक्तित्व विकास हो। 
  • एकीकरण का सिद्धांत
  • प्रयोजनवादी ज्ञान एवं बुद्धि को अखंड मानते हैं क्योंकि वह पाठ्यक्रम में अलग-अलग विषयों की बजाय सभी विषय को पढ़ाये जाने के पक्ष में हैं।

प्रयोजनवाद तथा बालक

  • प्रयोजनवादी बालक को अनुभव का केंद्र मानते है। बालक को वास्तविक शिक्षा तभी प्राप्त होती है, जब उसमें सामाजिक विचारों आदर्शों को समझने के साथ-साथ उनकी चुनौतियां का सामना करना आता हो। इसलिए बालकों को अन्य साथियों के साथ संबंध स्थापित कर व्यावहारिक क्रियाओं का अनुभव करना चाहिए।

प्रयोजनवाद व शिक्षक

  • शिक्षक का कर्तव्य होता है कि वह शिक्षा योजना को इस तरह पेश करें की बालक की रुचि, रुझानों एवं बालकों की समस्याओं को उचित ढंग से हल करे। शिक्षक का कार्य होता है कि वह छात्रों का पथ प्रदर्शन करें।

प्रयोजनवाद व विद्यालय

  • शिक्षा व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देती है क्योंकि यह मनुष्य में उचित नैतिक मूल्यों का निर्माण करती है साथ ही बुद्धिमता का विकास करती है ड्यूवी के अनुसार विद्यालय को समाज का वास्तविक प्रतिनिधि होना चाहिए।
प्रयोजनवाद का मूल्यांकन के लिए लिंक पर क्लिक करें।

प्रयोजनवाद का मूल्यांकन

प्रयोजनवाद का निष्कर्ष

  • रॉस के अनुसार प्रयोजनवाद एक मानवीय दर्शन हैं जो मानता है की मानव क्रिया की अवधि में, अपने मूल्यों का निर्माण करता है और यह मानता है कि वास्तविकता हमेशा, निर्माण की अवस्था में होती है।
  • प्रयोजनवाद शिक्षा का मुख्य आदर्श माना जाता हैं रस्क ने प्रयोजनवाद की प्रशंसा के लिए कहा है कि प्रयोजनवाद, नवीनादर्शवाद के विकास में एक चरण मात्र है। जो हमेशा वास्तविकता का ध्यान रखता हैं।
सकारात्मक पक्ष
  • प्रयोजनवाद बच्चो को व्यवहारिक जीवन जीने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है।
  • प्रयोजनवाद एक सामाजिक शिक्षा है जो हमारे अंदर स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व जैसे गुणों का विकास करती हैं।
  • इसमें विचारों की जगह क्रिया की अधिक महत्वता है।
  • रस्क का मानना था कि इसने विचार को व्यवहार के अधीन बनाया हैं।
  • प्रयोजनवाद ने शिक्षा में नवीन शिक्षा, प्रगतिशील शिक्षा, क्रिया प्रधान पाठक्रम की वात कही।
नकारात्मक पक्ष
  • प्रयोजनवाद आध्यात्मिक गुणों की अवहेलना करके वर्तमान जगत पर अधिक महत्व मानता है।
  • प्रयोजनवाद सत्य को परिवर्तनशील मानता है।
  • प्रयोजनवाद पूर्व सांस्कृतिक आदर्शो और मान्यताओं को स्वीकार नहीं करता है।
  • प्रयोजनवाद ने शिक्षा का कोई उद्देश नहीं बताया ।

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