कबीर,कबीर के उपदेश,कबीर का एकेश्वरवाद,कबीर पंथ,कबीर का काव्य सौंदर्य,कबीर का रहस्यवाद,कबीर का दार्शनिक विचार ,कबीर की कृतियां,बीजक ,कबीर के दोहे

कबीर 

  • कबीर 15 वी शताब्दी के रहस्यवादी कवि और संत है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ एवं मृत्यु मगहर में हुई।

कबीर किसके समकालीन थे

  • कबीर सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
  • कबीर (हिंदीसाहित्य) भक्ति काल के ज्ञानाश्रीय निर्गुण काव्य शाखा के प्रवर्तक थे। 
  • उनकी वाणी से बहुत से सत्य और उनके कार्यों की जानकारी मिलती है और वह हिंदू और मुस्लिम एकता के समर्थक थे।

कबीर के उपदेश

  • रेमनी, सबद और सखियों के जरिए उन्होंने हिंदू और मुस्लिम को उपदेश दिए। वे किसी के साथ पक्षपात नहीं करते थे। उन्होंने सबके भले के लिए उपदेश देते हुए,तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियां, अनुष्ठान और अंधविश्वासों की कड़ी आलोचना की है।
  • 17 वी शताब्दी से पहले यह कहानी सुनाई जाती थी कि संत कबीर रामानंद के शिष्य थे जिनके कारण मजहिब के लेखकों ने उन्हें वैष्णव बैरागी माना है। 
  • उनका झुकाव वैष्णो मत की ओर था जिसका मुख्य कारण था कि उन्होंने ईश्वर को राम वंश माना। परंतु उनके काव्य में राम के परिवार या देवताओं का उल्लेख नहीं मिलता।

कबीर का एकेश्वरवाद

  • कबीर ऐसे एकेश्वरवाद की स्थापना करते हैं जिसमें ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण हो, लेकिन वह साथ ही धार्मिक अनुष्ठानों, धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों को नकारते हैं। 
  • कबीर के लिए एक एकेश्वरवाद का अर्थ है मनुष्यों का एक होना इसलिए वे शुद्धता, छुआछूत और सामाजिक कुरीतियों को नकारते है।

कबीर पंथ

  • कबीर की मृत्यु के पश्चात कबीर पंथ की स्थापना उनके अनुयाई शिष्यो द्वारा की गई। 
  • कबीर का उद्देश्य किसी नए पंथ की स्थापना करना नहीं था अपितु वह तत्कालीन प्रचलित धर्मों में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों और बुराइयों की आलोचना करते हुए संसार के मूल प्रश्नों की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते थे। जिससे लोगों मैं मानवता का विकास हो और एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना उत्पन्न हो।
  • कबीर पंथ की सबसे प्राचीन और प्रमुख शाखा उत्तर प्रदेश के काशी में स्थित कबीर चौरा शाखा है।

कबीर का काव्य सौंदर्य क्या है?

  • कबीर ने काव्य सौंदर्य में भक्ति,रहस्यवाद, अभिव्यंजना शैली, समाज दर्शन एवं दार्शनिक विचारों को बखूबी संजोया हुआ है। 
  • कबीर की भक्ति का केंद्र बिंदु प्रेम है। और वह भक्ति के माध्यम से प्रेम और अनुराग का समर्थन करते हैं।

कबीर का रहस्यवाद क्या है?

  • कबीर के अनुसार रहस्यवाद मनुष्य की ऐसी प्रवृत्ति है। जिससे परम तत्व और ईश्वर के साक्षात्कार का अनुभव कराती है।
  • कहा जाता है कि परम तत्व के मिलने के बाद ही मनुष्य को मुक्ति प्राप्त होती है। 
  • प्रोफेसर रानाडे के अनुसार ईश्वर के प्रति सहज सरल तथा अंतः प्रज्ञा का अनुभव ही रहस्यवाद है

कबीर का दार्शनिक विचार 

Kabir philosophy in hindi 

  • कबीर के दर्शन में शास्त्रों पर कोई आस्था नहीं है। क्योंकि शास्त्र किसी विशेष संप्रदाय के आधार पर टिके होते है। इसलिए वह गुरु के सत्संग उपदेशों के ज्ञान को ही दर्शन के रूप में अनुभूति करते हैं।
  • जल में कुंभ कुंभ में जल है। बाहर भीतरि पानि।
  • फूटा कुंभ जल जलहिं समाना। यह तथ कहयो ज्ञानी।।
  • अर्थात कबीर ने पंचतत्व में विलीन होने को मुक्ति माना है। उन्होंने कहा है जहां परम ज्योति प्रकाश मान हैं वहां इंद्रियों के माध्यम से नहीं पहुंचा जा सकता और ना ही देखा जा सकता है। यहां उन्होंने जल के समान ज्ञान के आत्मबोध पर प्रकाश डाला है।

कबीर की कृतियां

  • कबीर की प्रमुख कृति बीजक है जिसके तीन भाग हैं।
  • साखी इसमें कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों का वर्णन मिलता है
  • सबद यह संगीत में और प्रेम साधना से ओत प्रोत है।
  • रमैनी यह चौपाई छंद में लिखी गई है इसमें कबीर के विचारों का वर्णन है

कबीर के दोहे

  • धीरे धीरे रे मना। धीरे सब कुछ होय।माली सींचे सौ घड़ा। ऋतु आए फल होय।।
  • ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए। औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।।
  • बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोए। जो दिल खोजा आपना। मुझसे बुरा न कोए।।
  • बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंछी को छाया नहीं। फल लागे अति दूर।।

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