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Is Platonic Ideal State An Utopia? क्या प्लेटो का आदर्श राज्य काल्पनिक है?

क्या प्लेटो का आदर्श राज्य काल्पनिक है?  Is Platonic Ideal State An Utopia? प्लेटो स्वप्नदृष्टा थे, आदर्श राज्य के बारे में उनकी बुक रिपब्लिक में वर्णित हैं यह ऐसा स्वप्नलोकी राज्य था जिसकी इस संसार पर कहीं भी सत्ता नहीं है। उनके आदर्श राज्य को मात्र काल्पनिक नहीं कहा जा सकता है। बार्कर का मत है कि "यह वास्तविक परिस्थितियों पर आधारित है।" प्लेटों ने रिपब्लिक, में तात्कालीन यूनान की शासन प्रणालियों स्पा के वर्गतन्त्र (Oligarchy) का और कीर्तितन्त्र (Timochrasy), एथेन्स के लोकतन्त्र और सिराक्यू के निरंकुशतंत्र (Tyranny) का उल्लेख किया है।  उनके अनुसार ये सभी विकृत शासन प्रणालियां है क्योंकि इनमें विवेक पर अज्ञानता और वासना के तत्वों की प्रधानता है। उन्होंने तत्कालीन राज्यों के सुधार हेतु आईडिया दिया कि शासन में विवेक या विशुद्ध बुद्धि (Reason) को सर्वाच्च स्थान दिया जाये, एक नई शिक्षा पद्धति तथा साम्यवाद की प्रणाली द्वारा वासना (Appetite) और उत्साह (Apirit) को विवेक द्वारा नियंत्रित किया जाये।  उनका आदर्श राज्य कल्पना पर आश्रित नहीं है, अपितु वह ठोस तथ्यों पर आधरित एक ऐसा आद...

evaluate the ideal state of Plato's in hindi, Ideal State of Plato in hindi, प्लेटों के आदर्श राज्य की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए?

आदर्श राज्य की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए? Critically evaluate the ideal state of Plato The Concept of Ideal State and it's Critical Evaluation प्लेटो के आदर्श राज्य की अवधारणा की डनिंग, पॉपर, रसेल आदि विद्वानों ने कटु आलोचना की है। रसेल ने आदर्श राज्य को रोमांसवाद की संज्ञा दी है। प्लेटो के आदर्श राज्य की निम्न आलोचनाएँ की जाती हैं 1. आदर्श राज्य एक स्वप्निल संसार है   प्लेटो के आदर्श राज्य को अव्यावहारिक मानते हुए उसे एक स्वप्निल संसार (utopia) कहा है। उसे आसमान में स्थित नगर की संज्ञा दी गई है।  2. स्वतन्त्रता का निषेध प्लेटो का आदर्श राज्य व्यक्तियों को आवश्यक स्वतन्त्रता प्रदान नहीं करता है। इससे व्यक्तियों की सभी प्रवृत्तियों का विकास सम्भव नहीं हो पाता है। 3. उत्पादक वर्ग की उपेक्षा उनके आदर्श राज्य में उत्पादक वर्ग की उपेक्षा की गयी है। वह अन्य दोनों वर्गों की तरह उत्पादक वर्ग के लिए न तो विशेष शिक्षा की व्यवस्था करता है और न ही सामाज में उन्हें महत्वपूर्ण स्थिति प्रदान करता है। 4. शासक वर्ग की निरंकुश सत्ता इसमें दार्शनिकों को निरंकुश सत्ता सौंप दी गई हैं, ...

महावीर के पंचमहाव्रत सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?

महावीर के पंचमहाव्रत सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए? महावीर स्वामी ने मोक्ष की प्राप्ति, नैतिक जीवन एवं सम्यक चरित्र हेतु पंचमहाव्रत सिद्धांत दिए।   1.  अहिंसा जैन धर्म की प्रमुख शिक्षा। मन, वचन, कर्म से हिंसा न करना। 2. सत्य सत्य बोलना, असत्य को त्यागना। सत्य बोलते समय 5 बातों का ध्यान रखना। विचार, क्रोध, लोभ, हंसी, भय। 3. अस्तेय चोरी न करना। बिना अनुमति के वस्तु ग्रहण न करना। बिना आज्ञा के किसी घर में प्रवेश न करना। 4. अपरिग्रह आवश्यकता से अधिक धन संचय न करना  5. ब्रह्मचर्य  वासनाओं से दूर रहना। ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए पांच बातों का ध्यान देना। नारी से बात, उसका दर्शन, उससे अतरंग संबंध,उसका समीप्  ब्रम्हचर्य के बाधक है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में क्या अंतर हैं?

चक्रवात क्या है ? महासागरों में पवन की परिवर्तनशीलता व अस्थिरता से केन्द्र में, निम्न वायुदाब तथा बाह्य क्षेत्र में, उच्च वायुदाब बनता है चक्रवात कहलाता है। चक्रवात के प्रकार 1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात  इनकी उत्पत्ति ध्रुवीय क्षेत्रों में, ध्रुवीय वाताग्र यानि दो विपरीत गुणों वाली वायु राशि ( गर्म व ठंडी ) जलधाराओं के मिलने से होती है। इसके केन्द्र में निम्न वायुदाब, जबकि बाहर उच्च वायुदाब होता है। इनकी उत्पत्ति मध्य अक्षांश के दोनो गोलार्द्ध में 35 से 65॰ के मध्य होती है। एक आदर्श चक्रवात का विकास 6 क्रमिक चक्र अवस्था में होता है। जिसका व्यास 1950km होता है। 2. उष्णकटिबंधीय चक्रवात उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवात को उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। इनकी उत्पत्ति कर्क व मकर रेखा के मध्य होती है। वह स्थान जहां उष्णकटिबंधीय चक्रवात तट को पार कर जमीन तक पहुंच जाते उसे चक्रवात का लैंड फाल कहते हैं।  भूमध्य रेखा के समीप दोनो गोलार्द्ध की व्यापारिक पवने मिलती हैं, वहा निम्न वायुदाब का विकास होता है, यह क्षेत्र ITCZ कहलाता हैं। उष्णक...

अरस्तू का दर्शन क्या है,अरस्तु के चार कारण,Four cardinal of Aristotle

अरस्तू का दर्शन क्या है?  अरस्तु, प्लेटों के शिष्य थे उन्होंने विचारों को भौतिकी के बाद लिखा , इसलिए अरस्तू के दर्शन को मेटाफिशक्स की संज्ञा दी गई। अरस्तु के दर्शन का सम्बध प्रज्ञा के था, न कि साधारण ज्ञान से।  उन्होंने विश्व की सम्यक रूपेण व्याख्या के लिए कारणता का सिद्धांत दिया। वह कारणता के सिद्धांत का प्रयोग व्यापक अर्थ में करते हुऐ, वैश्विक पदार्थो के अस्तित्व, उत्पत्ति, उद्देश्य तथा लक्ष्य की व्याख्या करते है। अरस्तु के चार कारण है। Four cardinal virtues of Aristotle in hindi उपादान कारण (मैटेरियल कॉस्ट) - निर्माण किससे हुआ? जैसे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी धातु से निर्मित। निर्मित कारण (एफिसिंट कॉस्ट) - निर्माण किसने किया?  मूर्तिकार, मजदूर । स्वरूप कारण (फॉर्मल कॉस्ट) - कार्य क्या है? अलंकृत होना। लक्ष्य या प्रयोजन कारण(फाइनल कॉस्ट) -  लक्ष्य क्या है? एकता का प्रतीक।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थें, भारत के राष्ट्रपति की सूची , राष्ट्रपति की सूची

भारत के राष्ट्रपति की सूची भारत के पहले राष्ट्रपति कौन थे? भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद थे वह दो कार्यकाल तक पद पर रहे एकमात्र राष्ट्रपति, जिनका सबसे लम्बा कार्यकाल रहा है। 1934 में बॉम्बे सत्र में राजेंद्र प्रसाद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। वह दूसरी बार अध्यक्ष बने जब सुभाष चंद्र बोस ने 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन, में इस्तीफा दे दिया । दो कार्यकाल तक पद संभालने वाले भारत के एकमात्र राष्ट्रपति कौन थे? 26 जनवरी, 1950 को देश के संविधान को अंगीकार करने के साथ ही राजेंद्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति के रूप में पद पर कार्यरत हो गए थे। जो 13 मई, 1962 तक कुल मिलाकर 12 साल 107 दिन तक भारत के राष्ट्रपति रहे। भारत के सर्वाधिक कार्यकाल वाले राष्ट्रपति कौन है? राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में 26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962 तक कुल मिलाकर 12 साल 107 दिन तक भारत के राष्ट्रपति रहे, जो अब तक के सभी राष्ट्रपतियों में सबसे अधिक लम्बा कार्यकाल रहा है। लगातार दो बार बनने वाले एकमात्र राष्ट्रपति थे? Dr राजेंद्र प्रसाद 1952 और 1957 में लगातार दो ...

अरस्तु के नैतिक विचार का संक्षिप्त वर्णन करें?

अरस्तु के नैतिक विचार का संक्षिप्त वर्णन करें? अरस्तू को नीतिशास्त्र को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। जिसका उल्लेख निकोमेकेनियन एथिक्स नामक बुक से पता चलता है। अरस्तू के नैतिक विचार, सुकरात एन प्लेटो से प्रभावित है। नैतिकता का संबंध व्यक्ति के सभी कर्मो से नहीं होता, बल्कि स्वतंत्र संकल्प आधारित कर्मों पर होता है। उनके अनुसार दो प्रकार के स्वेक्छिक कर्म माने जाते है। 1. बिना दबाव के किए गए कर्म। 2.परिस्थतियों से अनभिज्ञ होने से किए गए कर्म । सद्गुण का सिद्धांत (सदगुण) -   सद्गुण मनुष्य की स्थायी अवस्था है जो कठिन परिश्रम के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। सद्गुण इसे अच्छे कर्म हैं जो विवेक और बुद्धि के साथ कर्तव्य निर्वहन एवं अच्छा आचरण में सहायक हैं। मध्यम मार्ग का सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार नैतिक सद्गुण दो अतिवादी दृष्टिकोण के बीच वांछनीय मध्य है जैसे संयम अनियंत्रित भोग और वैराग्य के बीच की स्थिति है।