Ancient agriculture,green revolution and it's effects भारत में हरित क्रांति का विकास और प्रभाव
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प्राचीन भारत में कृषि ancient agriculture of india |
प्राचीन समय में कृषि के उपकरण
मानव प्रकृति से जीवन की जरूरतों को विभिन्न वस्तुओं के रूप में प्राप्त करता है तथा उन वस्तुओं पर कृषि का महत्वपूर्ण योगदान रहता है यह इसलिए कि यह खाद्य वस्तुओं का एकमात्र स्रोत होता है और प्राचीन काल से देखा है देखा जाए तो भारत एक कृषि प्रधान देश है । इसका अंदाजा हम भारत की जनसंख्या से लगा सकते हैं क्योंकि भारत की लगभग 72.2% जनसंख्या गांव में निवास करती है तथा इन गांव वासियों का मुख्य जीवन आधार कृषि होता है । अगर वर्तमान स्वरूप को देखें तो देश की कुल सकल घरेलू आय का लगभग 18% हिस्सा कृषि वानिकी एवं मछली पालन से आता है । अगर हम वर्तमान स्वरूप को देखें तो उद्योगीकरण का विकास अत्यधिक तीव्र गति से हो रहा है किंतु राष्ट्रीय आय का योगदान कृषि में औद्योगिक क्षेत्र से अभी भी अधिक है हम आंकड़ों पर ध्यान दें तो लगभग 64 % जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर रहती है । भारत में इस तीव्र विकास के चलते कृषि खाद्यान्नों में बढ़ावा हेतु एवं खाद्य आपूर्ति की समस्या के समाधान हेतु पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत नवीन कृषि तकनीकी का उपयोग किया गया । जिससे देश में व्याप्त खाद्य आपूर्ति पर आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सके। देश में कृषि संबंधित सुधारों से फसलों में 1966-67 तुलना में 1967-68 यानी इस 1 वर्ष में लगभग 25 % की वृद्धि हुई जो क्रांति के समान थी इसी कारण विद्वानों ने अनाज के उत्पादन में हुई वृद्धि को ही हरित क्रांति की संज्ञा दी
हरित क्रांति से आशय कृषि उत्पादन में उस तीव्र खाद्यान्नों की वृद्धि से है। जिनकी प्राप्ति कम समय मैं अधिक उपज देने वाले बीजों के हाई वैरायटी के उपयोग से संभव हुई है। इन अधिक उपज देने वाले बीजों के उपयोग के साथ ही अधिक उत्पादन की प्राप्ति के लिए आवश्यक तत्व जैसे उर्वरक सिंचाई कीटनाशक दवाएं कृषि प्रौद्योगिकी आदि उचित एवं कुशलता पूर्वक उपयोग किया जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के बिलियन ग्रैंड ने सर्वप्रथम हरित क्रांति शब्द का उपयोग किया था और सर्वप्रथम 1950 के दशक में हरित क्रांतिकी शुरुआत रॉकफेलर फोर्ड फाउंडेशन मेक्सिको के अंतर्गत हुआ जिसमें इस कार्यक्रम के निदेशक नॉर्मन बोरलॉग को 1970 में उनकी इस क्षेत्र के प्रशंसनीय योगदान हेतु एवं उनके अनुसंधान कार्यों के लिए विश्व शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया ।नॉर्मन बोरलॉग को ही हरित क्रांति का जनक माना जाता है।
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Harvester नई मशीनो का उपयोग : हारवेस्टर |
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कृषि में ट्रैक्टर का उपयोग |
हरित क्रांति को अपनाने के पीछे प्रमुख उद्देश्य
A कृषि में वैज्ञानिक कारण एवं मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार
B कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करना
C कृषि विकास दर में तीव्रता लाना और स्थिर कृषि विकास को बनाए रखना
D किसानों की दशा में सुधार लाना
E कृषि गत दशा में सुधार लाना
F ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की प्रक्रिया को तीव्र करना
G कृषि में आत्मनिर्भरता लाना
H कृषि विकास में संतुलन राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाना।
इन सभी उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विधियां
-कृषि में संस्थागत सुधार अर्थात भूमि सुधार और स्वामित्व आदि
-संरचनात्मक सुधार जैसे सिंचाई की आधुनिक प्रणालियों का उपयोग करना जिनमें नहर द्वारा सिंचाई, ट्यूबवेल, डीजल पंप, संकर बीज, रासायनिक उर्वरक कीटनाशकों का उपयोग आदि शामिल है
-किसानों को जागरूक कर कृषि की नवीन प्रक्रियाओं से जोड़ना
-कृषि तकनीकी व नवाचारों का प्रयोग करना
-उचित शासन की नीतियां जिनमें सब्सिडरी, वित्तीय प्रबंधन, ऋण उपलब्ध कराना, भंडारण, न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि का अनुप्रयोग
बीसवीं शताब्दी के छठे दशक में 1966 में भारत हरित क्रांति का शुभारंभ होगा इसका श्रेय मुख्य रूप से नॉर्मन बोरलॉग एवं भारत के विख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को जाता है तथा भारत में हरित क्रांति का जनक एमएस स्वामीनाथन को कहा जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश में खाद्यान्न समस्या को दृष्टिगत करने हेतु सरकार में 1959 में फोर्ड फाउंडेशन के कृषि विशेषज्ञों के एक दल को आमंत्रित किया । तथा इस दल ने भारत में व्याप्त समस्याओं का मूल्यांकन एवं गहन अध्ययन किया जिसके पश्चात खाद्यान्न समस्या एवं सुझाव संबंधी पर एक प्रतिवेदन सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया 1966 एवं 67 में सरकार द्वारा एक नई कृषि नीति का प्रारूप तैयार किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य कम समय में कृषि उत्पादन में अधिकाधिक वृद्धि करना था इस कृषि नीति के अंतर्गत अधिक उपज बाली किस्मों को व्यापक रूप से उपयोग करना था। 1966 एवं 67 में कृषि क्षेत्र में व्यापक रूप से हुई वृद्धि करने वाली विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का प्रसार एवं प्रचार किया गया इसी कारण से इस वर्ष को हरित क्रांति का प्रारंभ वर्ष माना जाता है । भारतीय कृषि वैज्ञानिक ने भारत की कृषि के अनुरूप उन्नत किस्म की फसलों की प्रजातियों का विकास किया जिनका उपयोग उर्वरक, सिंचाई, उन्नत बीज , पौधे की संरक्षक जैसे समस्त उपायों का एक संयुक्त कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसी के परिणाम स्वरूप ही कृषि में अभूतपूर्व वृद्धि हुई जिसे आज हम हरित क्रांति के नाम से जानते हैं विख्यात कृषि विज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन के इस कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के कारण ही उन्हें भारतीय हरित क्रांति का जनक कहा जाता है
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बैल का उपयोग कृषि भूमि पर |
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खेत में कार्य करते हुए मजदूर |
हरित क्रांति एवं इसका प्रभाव
देश में इस दिशा में प्रथम संगठित प्रयास 1966 में गहन कृषि जिला कार्यक्रम इंटेंसिव एग्रीकल्चर डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम आईएडीपी के तहत चयनित 7 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किया गया । उक्त 7 जिलों में जिनमें अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश ), लुधियाना ( पंजाब )और Thanjavur ( तमिलनाडु) , पश्चिम गोदावरी ,(आंध्र प्रदेश ), रायपुर (छत्तीसगढ़ ) , शाहबाद (बिहार) , पाली( राजस्थान ) थे ।इस कार्यक्रम के परिणामों से उत्साहित होकर सरकार ने अक्टूबर 1965 में इस कार्यक्रम के संशोधित रूप को गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम आईएडीपी के नाम से देश में चुने गए 114 जिलों में चलाया गया। वास्तविक रूप से बोने किस्म की गेहूं के बीजों के अविष्कार के लिए नॉर्मन बोरलॉग को विश्व में हरित क्रांति का जनक कहा गया जो न्यू मैक्सिको में पांचवें दशक में गेहूं विकास कार्यक्रम के प्रभारी भी रहे थे 1951 में मैक्सिको में इनके द्वारा बोने किस्म की गेहूं का उत्पादन किया गया तथा 1956 में खाद्यान्न की दृष्टि से मेक्सिको को आत्मनिर्भर बना दिया और साथ ही गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन ढाई गुना तक बढ़ा जो उनका अभूतपूर्व कार्य था।
भारत में भी भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्रों में किसी वैज्ञानिक द्वारा ज्वार ,मक्का ,bajra की संकर किस्मों को खोजा गया तथा इसके कारण फसलों की की प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि संभव हुई। तत्पश्चात सरकार द्वारा कृषि विकास की संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए नई कृषि नीति को 1966 में एक मस्त कार्यक्रम के रूप में चलाया गया । जिसके लिए सिंचाई की नियंत्रित व्यवस्था के साथ रासायनिक उर्वरक उत्तम एवं संकर किस्म के बीज कीटनाशक दवाएं एवं आधुनिक कृषि तकनीक संबंधी मशीनें एवं उपकरण उपलब्ध कराए गए ।
यह कार्यक्रम चतुर्थ योजना में शुरू में 18.90 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि पर लागू किया गया था जिसमें 1997 से 98 तक लगभग 660 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर लागू करना संभव हुआ । जो कि खाद्यान्नों के अधीन क्षेत्र का लगभग 61.3% था। हमारे देश में हरित क्रांति संबंधी योजना एकदम नहीं आई है और ना ही पूरे देश में एक समान फैली है । वर्तमान में भी देश में कुछ ही राज्य ऐसे हैं जो हर क्रांति से प्रभावित हैं जबकि अनेक राज्यों में अभी भी यह प्रवेश के रूप में क्रियान्वित है । भारत में हरित क्रांति स्वयं एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसके माध्यम से भविष्य की संभावनाओं को आसानी मापने में सहायता प्रदान करेगी जिसके कारण ही भारत में भुखमरी , गरीबी ,कुपोषण , खाद्य आपूर्ति जैसी गंभीर समस्याओं का समाधान हुआ है
हरित क्रांति की सफलता के कारण एवं व्यूह रचना
रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से कृषि उपज में तीव्र वृद्धि
अधिक उपज देने वाले उत्तम बीज का उपयोग
सिंचाई व्यवस्था का अनुकूल उपयोग
पौधों को संरक्षण प्रदान करने के लिए विभिन्न उपाय अपनाना
आधुनिक कृषि तकनीकी का उपयोग करने जैसे ट्रैक्टर , हार्वेस्टर, नलकूप पंप चारा कटाई मशीन, खाद डालने वाली मशीन इत्यादि
बहु फसली कार्यक्रम
किसानों को ऋण की उपलब्धता प्रदान कराना
भूमि एवं मृदा का परीक्षण करना और संरक्षण पर ध्यान देना
बाजार व्यवस्था में खाद्य की भंडारण व्यवस्था एवं मांग एवं आपूर्ति उपलब्ध कराना
कृषि उत्पादों का उचित मूल्य होना
नवीन कृषि तकनीकों को किसानों को प्रशिक्षण देना एवं जानकारी उपलब्ध कराना
ग्रामीण क्षेत्रों का विद्युतीकरण
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भारत में कृषि उत्पादन का विकास संबंधित डाटा और अन्य देशों से तुलना |
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भारत में कृषि उत्पादन का योगदान 1980 से 2014 तक |
Good thinking bro
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