Multisideness of jain philosophy , anekantvad , anatmvad and syayvad ) अनेकान्तवाद, अनात्मवाद और स्यादवाद ,सप्तभांगनिय सिद्धांत
* जैन धर्म में अनेकांतवाद का सिद्धांत
महावीर जैन |
अनेकांतवाद का सिद्धांत |
संसार में अनेक वस्तुओं है एवं प्रत्येक वस्तु में अनंत धर्म है जैन धर्म में द्रव कहा गया है क्योंकि प्रत्येक वस्तु में अनेक धर्म होते हैं इसलिए किसी भी कथन में उस वस्तु का आंशिक या सापेक्षिक तत्व की अभिव्यक्ति होती है
जैन धर्म के अनुसार सत्य नानात्मक है अर्थात इसकी कई पहलू हैं इस बात को जैन धर्म में एक उदाहरण द्वारा समझाया गया है जन्म से ही अंधे लोगों के गांव में एक हाथी आया उन्हें हाथी का कोई ज्ञान नहीं था सब ने हाथी के अलग-अलग अंगों को स्पर्श कर हाथी के बारे में ज्ञान जानने का निश्चय किया जिसने उसके पैर को छुआ उसने उसे खंबे की तरह समझा दूसरा आदमी जिसने पीठ को छुआ उसने दीवाल की तरह महसूस किया तीसरा आदमी जिसने सूढ़ को छुआ उसे सांप के समान प्रतीत हुआ चौथा आदमी जिसने पैर को छुआ उसे पेड़ की समान महसूस किया और एक व्यक्ति ने कान को स्पर्श किया उसे कान पंखी जैसा लगा एवं छठवीं व्यक्ति ने जब दांत को छुआ तो उसे हाथी के दांत भाले वाले के समान लगे इन सभी छह व्यक्तियों ने हाथी की विभिन्न शरीर को छूकर अपना व्यक्तिगत मत को प्रस्तुत किया अगर हम इन सभी मतों को देखें तो सभी ने अपने ज्ञान में जो अनुभव प्राप्त किया उसी को वह बताते हैं अगर हम 6 व्यक्तियों को देखें तो भी सभी अपने अपने ज्ञान के अनुसार सत्य बोल रहे हैं लेकिन कोई असत्य भी नहीं बोल रहा परंतु यह ज्ञान अभी भी आंशिक है क्योंकि वह एकल मत पर आधारित है अगर यह व्यक्तिगत मत सामूहिक होकर सभी व्यक्ति द्वारा एकमत हो जाएं तो यह पूर्ण ज्ञान कहलाएगा इसे ही अनेकांतवाद कहा गया है अर्थात अगर यह 6 लोग अपने मत को एक कर एक हो तो उन्हें हाथी के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाएगा तत्वों की दृष्टि से जो सत्ता है वह अनेकांतवाद है जबकि ज्ञान की दृष्टि से है जो वह स्यादवाद है
जैन धर्म में ज्ञान की दृष्टि से जो सिद्धांत उत्पन्न हुआ है उसे ही स्यादवाद माना गया है संसार में जितनी भी वस्तुएं है उनके बारे में सामान्य ज्ञान प्राप्त है यानी आंशिक रूप से हम उनको जानते हैं हम यह भी मान सकते हैं कि इन वस्तुओं के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है और जो ज्ञान हमारे पास उपलब्ध है उसके बारे में हम पूर्ण रूप से आस्वीकार नहीं कर सकते और ना ही पूर्ण रूप से स्वीकार सकते हैं इसलिए जब हम किसी वस्तु के बारे में कोई बात बताते हैं तो हमें उस विषय वस्तु के निर्णय में स्यात यानी शायद लगाना चाहिए तथा इसे ही जैन धर्म में सप्तभांगनिय सिद्धांत कहा गया है जिन्हें सात भागों में बांटा गया है यानी किसी वस्तु और सत्य के बारे में 7 कथन हो सकते हैं
स्यायत अस्ति अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है
स्य्यात नास्ति अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु नहीं है
शायद अस्ति ना नास्ति अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है वस्तु नहीं है
शायद अव्यक्तयम अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता
शायद अस्ति च अव्यक्तयम अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है और अव्यक्तयम है
शायद नास्ति च अव्यक्त्यम सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु नहीं है और अब अवयक्त्मय है
शायद अस्ति च नास्ति च अव्यक्त यम अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है नहीं है वस्तु और अव्यक्त यम है
आप हमारे ब्लॉग से बुद्ध के उपदेशों यानी दार्शनिक मत प्रतीत्यसमुत्पाद , द्वादश सिद्धांत , अनित्य वाद , क्षणिकवाद और अनात्मवाद के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है
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हाथी एवं अंधे की कहानी जिससे अनेकांतवाद को समझा जा सकता है |
अनेकात्मवाद सिद्धांत क्या है
अगर हम जैन धर्म की मान्यता के अनुसार अनेकांतवाद को समझें तो उसमें जीव विभिन्न प्रकार के होते हैं और उसमें आत्माएं भी भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं और आत्मा के संबंध में जैन धर्म यह विचार उपनिषदों की आत्मा सिद्धांत से बिल्कुल अलग है उपनिषद सारे संसार में व्याप्त एक आत्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं परंतु जैन धर्म में एक आत्मा पर विश्वास नहीं किया जाता जैन धर्म का मत यह है कि संसार में अनेक आत्माओं के अस्तित्व को माना गया है तथा ऐसे ही जैन धर्म में अनेक आत्मवाद कहा गया है
जैन धर्म का स्यादवाद सिद्धांत क्या है
सप्तभांगनिय सिद्धांत
हम साधारण रूप से या सामान्य रूप से मनुष्य किसी वस्तु को दिक काल यानी सापेक्षिक काल में एक दृष्टि ही से देखते हैं इसलिए वह वस्तु के हम उस वस्तु के एक ही गुण को जान पाते हैं इसलिए हमारे पास उस विषय वस्तु के बारे में आंशिक ज्ञान होता है जबकि वह व्यक्ति जिसने केवल्या की प्राप्ति कर ली हो तो वह विभिन्न दृष्टिकोण से वस्तु को देखने में सक्षम हो जाता है इसे ही पूर्ण ज्ञान कहा गया हैजैन धर्म में ज्ञान की दृष्टि से जो सिद्धांत उत्पन्न हुआ है उसे ही स्यादवाद माना गया है संसार में जितनी भी वस्तुएं है उनके बारे में सामान्य ज्ञान प्राप्त है यानी आंशिक रूप से हम उनको जानते हैं हम यह भी मान सकते हैं कि इन वस्तुओं के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है और जो ज्ञान हमारे पास उपलब्ध है उसके बारे में हम पूर्ण रूप से आस्वीकार नहीं कर सकते और ना ही पूर्ण रूप से स्वीकार सकते हैं इसलिए जब हम किसी वस्तु के बारे में कोई बात बताते हैं तो हमें उस विषय वस्तु के निर्णय में स्यात यानी शायद लगाना चाहिए तथा इसे ही जैन धर्म में सप्तभांगनिय सिद्धांत कहा गया है जिन्हें सात भागों में बांटा गया है यानी किसी वस्तु और सत्य के बारे में 7 कथन हो सकते हैं
स्यायत अस्ति अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है
स्य्यात नास्ति अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु नहीं है
शायद अस्ति ना नास्ति अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है वस्तु नहीं है
शायद अव्यक्तयम अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता
शायद अस्ति च अव्यक्तयम अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है और अव्यक्तयम है
शायद नास्ति च अव्यक्त्यम सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु नहीं है और अब अवयक्त्मय है
शायद अस्ति च नास्ति च अव्यक्त यम अर्थात सापेक्षिक दृष्टि से वस्तु है नहीं है वस्तु और अव्यक्त यम है
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