Our solar system ,origin of earth, one star hypothesis, Binary star hypothesis, mordern hypothesis (bigbang hypothesis) theories सौरमंडल एवं पृथ्वी की उत्पत्ति ,बिग बैंग थ्योरी
ब्रह्मांड विभिन्न विषमताओं और विविधता से भरा हुआ है। ब्रह्मांड में ऐसे अनेक राज छुपे हुए हैं जिन्हें हम अभी भी जानते नहीं हैं पर विज्ञानिक अभी भी विभिन्न शोध और परीक्षण के आधार पर हमको हमारे सौरमंडल के बारे में विभिन्न जानकारी से अवगत कराते हैं। जिनसे हमें हमारी पृथ्वी मां की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
*हमारे सौर परिवार के ग्रहों को दो भागों में विभाजित किया जाता है प्रथम वर्ग में आंतरिक ग्रह या terrestrial planet आते हैं जिसमें बुध शुक्र पृथ्वी मंगल और शुद्र ग्रह शामिल है सभी चार ग्रह आकार में छोटे हैं। जबकि द्वितीय वर्ग में बाह्य ग्रह शामिल है जो आंतरिक ग्रह कोई अपेक्षा आकार में बड़े हैं और इन का घनत्व बहुत ही कम है ये ग्रह सूर्य से अधिक दूरी होने के कारण इनकी परिभ्रमण गति अधिक है साथ ही इन ग्रहों के पास उपग्रहों की संख्या भी आंतरिक ग्रहों की अपेक्षा अधिक है तथा यह ग्रह गैसों से बने होने के कारण इन्हें गैसीय और gaint प्लैनेट कहते है।
*सभी ग्रह अपने अक्ष पर तल पर झुके हुए हैं तथा इनका झुकाव भिन्न-भिन्न है एवं सभी ग्रह वृत्ताकार या दीर्घ वृत्ताकारमें घूमते हैं आकार व द्रव्यमान की दृष्टि से सभी ग्रह सूर्य की तुलना में बहुत छोटे हैं परिवार में कुल द्रव्यमान का लगभग 98% भाग्य केवल मात्र सूर्य में केंद्रित है
*हमारे सौर परिवार में ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और साथ ही अपने अक्ष पर भी घूर्णन करते हैं और यह सभी ग्रहों की गति और दूरी पर निर्भर होता है
ब्रह्मांड क्या है ?
अभी तक हमें इस रहस्यमय ब्रह्मांड के बारे में बहुत कम जानकारी ही उपलब्ध है । ब्रह्मांड असीमित है जिसका कोई आकार नहीं है और हम यह भी ज्ञात नहीं कर सकते कि यह कितना बड़ा है। वैज्ञानिकों के अनुसार माने तो ब्रह्मांड का लगातार प्रसार हो रहा है इस ब्रह्मड में विभिन्न तारा, नक्षत्र ,ग्रह, उपग्रह ,ब्लैक होल, आकाशगंगा, सौर परिवार इत्यादि सम्मिलित रूप से इसी का भाग है। पृथ्वी समेत आठ ग्रह के समूह को हमारा सौर परिवार कहा जाता है जिसे समस्त रूप से सौरमंडल कहते है। यह सभी आठ ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं जिसमें सूर्य हमारे सौर परिवार का मुखिया है हमारा सौर परिवार की उत्पत्ति शायद एक ही समय एक ही पदार्थों से हुई होगी। अतः हम यह मान सकते हैं कि सौर परिवार की उत्पत्ति के अनुसार ही पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। समय-समय पर अलग-अलग वैज्ञानिकों ने सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न जानकारी प्रस्तुत की गई है परंतु अभी भी हम यह नहीं कह सकते कि कोई भी परिकल्पना सर्वमान्य है।सौरमंडल
हमारे सौरमंडल की विभिन्न विशेषताएं हैं। सौर परिवार में सभी ग्रह विभिन्न आकार की हैं। किंतु इनमें एक आश्चर्यजनक व्यवस्था भी देखने को मिलती है मध्यस्थ ग्रहण का आकार सबसे बड़ा है और दोनों और उनका आकार छोटा होता जाता है। खगोल वैज्ञानिक ग्रहों की इस आकार व्यवस्था को सिगार आकृति कहते हैं।*हमारे सौर परिवार के ग्रहों को दो भागों में विभाजित किया जाता है प्रथम वर्ग में आंतरिक ग्रह या terrestrial planet आते हैं जिसमें बुध शुक्र पृथ्वी मंगल और शुद्र ग्रह शामिल है सभी चार ग्रह आकार में छोटे हैं। जबकि द्वितीय वर्ग में बाह्य ग्रह शामिल है जो आंतरिक ग्रह कोई अपेक्षा आकार में बड़े हैं और इन का घनत्व बहुत ही कम है ये ग्रह सूर्य से अधिक दूरी होने के कारण इनकी परिभ्रमण गति अधिक है साथ ही इन ग्रहों के पास उपग्रहों की संख्या भी आंतरिक ग्रहों की अपेक्षा अधिक है तथा यह ग्रह गैसों से बने होने के कारण इन्हें गैसीय और gaint प्लैनेट कहते है।
*सभी ग्रह अपने अक्ष पर तल पर झुके हुए हैं तथा इनका झुकाव भिन्न-भिन्न है एवं सभी ग्रह वृत्ताकार या दीर्घ वृत्ताकारमें घूमते हैं आकार व द्रव्यमान की दृष्टि से सभी ग्रह सूर्य की तुलना में बहुत छोटे हैं परिवार में कुल द्रव्यमान का लगभग 98% भाग्य केवल मात्र सूर्य में केंद्रित है
*हमारे सौर परिवार में ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और साथ ही अपने अक्ष पर भी घूर्णन करते हैं और यह सभी ग्रहों की गति और दूरी पर निर्भर होता है
पृथ्वी की उत्पत्ति
जैसा कि हम पहले ही समझ चुके हैं कि सौरमंडल की रचना जब हुई थी उसी समय पृथ्वी की भी उत्पत्ति हुई होगी। पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित अभी तक कोई सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है। इसी कारण से पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में अभी भी रहस्य बना हुआ है इसलिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपने तथ्यों के आधार पर परिकल्पना दी है जिनमें कुछ गुण एवं दोष भी हैं जिससे हम पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में जान सकते हैं परिकल्पना को 3 भागों में वर्गीकृत किया गया हैएक तारा परिकल्पना
दो तारा परिकल्पना बाइनरी हाइपोथेसिस
नवीन परिकल्पना modern hypothesis
A. Kant की वायव्य राशि परिकल्पना (गैसियस हाइपोथेसिस आफ कांत)-
कांत ने 1755 में इस परिकल्पना का प्रतिपादन किया जिसके अनुसार प्रारंभ में असंख्य आद्य पदार्थ या प्रीमोर्दियल मैटर के कण ब्रह्मांड में फैले हुए थे । तथा यह सभी का गुरुत्वाकर्षण के कारण आपस में टकराने लगे तथा इस टकराव से अत्यधिक मात्रा में ताप उत्पन्न हुआ और इस ताप के कारण द्रव्य गैसी अवस्था के रूप में परिवर्तित हो गया इसके बाद गैसीय केंद्रित हो जाने पर परिभ्रमण करने लगी। उनकी मान्यता थी की जैसे जैसे पुंज का आकार बढ़ने के साथ-साथ उसकी परिभ्रमण गति में भी वृद्धि हुई इस प्रक्रिया में नौ गोलाकार छल्ले बने जो कि निहारिका के रूप में अलग हो गए इससे नौ ग्रह तथा इनके उपग्रह बने और जो अवशिष्ट बचा वह सूर्य बना इसी प्रकार से सौर परिवार की रचना हुई इसलिए कांत ने कहा था मुझे मैटर दो मैं पृथ्वी की उत्पत्ति करके दिखाऊंगा।
जेम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना tidal hypothesis of James and jeans
जेम्स जींस ने सौर परिवार की उत्पत्ति के संबंध में ज्वारीय परिकल्पना को 1919 में प्रतिपादित किया। उनके अनुसार सूर्य अपने वर्तमान आकार से काफी बड़ा और गैस का गोला था। सूर्य से भी कई गुना बड़ा एक तारा अपने पथ पर चलता हुआ सूर्य के निकट से गुजरा जैसे-जैसे यह तारा निकट आने लगा सूर्य के बाहरी भाग में ज्वार उठने लगा। इस तारीख की सूर्य के निकट आने पर यह जो और अधिक प्रबल हो गया सिगार के आकार का ज्वारीय फिलामेंट करोड़ों किलोमीटर लंबाई तक विस्तृत हुआ तब यह फिलामेंट ना तो तारे के साथ जा सका और ना ही सूर्य से मिल सका। गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से यह सूर्य की परिक्रमा करने लगा । द्रव्य राशि पर सूर्य की गुरुत्वाकर्षण के कारण ही फिलामेंट के रूप में ग्रहों की रचना हुई।
चेंबर्लिन और मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना
इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति ग्रहाणु से हुई है इनकी मान्यता थी कि ब्रह्मांड में प्रारंभ में दो विशाल तारे थे एक सूर्य और दूसरा साथी विशाल तारा आरंभ में सूर्य का आकार वर्तमान सूर्य से बहुत बड़ा था जिसका एक साथी ही तारा अपने विशाल पथ पर घूम रहा था घूमते घूमते जब सूर्य से अधिक निकट पहुंच गया तब विशाल तारे की आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से निकला पदार्थ घूमते हुए तारों में नहीं मिल सका क्योंकि जब तक पदार्थ निकला तब तक तारा अपने पथ से आगे बढ़ गया और यह पदार्थ तारे की गुरुत्व सीमा से दूर हो गया इस स्थिति मेग्रहाणु सूर्य की परिक्रमा करने लगे। यह ग्रहाणु छोटे बड़े सभी आकार के थे बड़े ग्रहाणु ने केंद्र के रूप में काम किया और छोटे ग्रहाणु को अपनी ओर आकर्षित कर लिया धीरे-धीरे बड़े ग्रहाणु का आकार बढ़ता गया और वे ग्रह के रूप में निर्मित हो गए।
रसेल की परिकल्पना वायनरी स्टार हाइपोथेसिस ऑफ रसैल
रसेल ने युग्म तारा पर आधारित सिद्धांत का प्रतिपादन किया बहुत पहले सूर्य का एक साथी तारा था जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा लगा रहा था कुछ समय बाद विशालकाय तारा सूर्य के साथी तारे के पास आया इसके कारण साथी तारा से ज्वार उत्पन्न हुआ साथ ही तारे से उत्पन्न हुआ पदार्थ सूर्य की परिक्रमा करने लगा। तथा इस पदार्थ से ही ग्रहों की उत्पत्ति हुई।
नवीन परिकल्पना
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक थ्योरी
उन्होंने 1942 में विद्युत चुंबकीय शक्ति के द्वारा सौर परिवार की उत्पत्ति के बारे में समझाया इनके अनुसार सूर्य का यह चुंबकीय क्षेत्र आदि काल में वर्तमान की अपेक्षा कई हजार गुना अधिक रहा होगा उनकी यह धारणा भी थी कि वह सूर्य से पहले बड़ी परिभ्रमण कर रहा था तीव्र गति से परिवहन करते हुए सूर्य परमाणु के एक मेघ में जा पहुंचा इसमें के अणु विद्युत की दृष्टि से तटस्थ थे यह अणु सूर्य के चुंबकीय प्रभाव में आकर सूर्य की परिक्रमा करने लगी इस मे विस्तार वर्तमान समस्त ग्रहों के कुल फैलाव के बराबर था अणुओं के एकत्रित होने से विभिन्न ग्रह एवं उपग्रह बने।
धूल परिकल्पना आटो शिमिड
इस इस परिकल्पना के आधार पर ब्रह्मांड में गैस हैं एवं धूल के बादल इधर-उधर बिखरे हुए थे जिन से ही सौर परिवार के ग्रह की उत्पत्ति हुई ये गैस के धूल के कणो से अत्यधिक घनत्व के कारण गुरुत्वाकर्षण से आकर्षित होने पर ग्रहों का निर्माण हुआ। इन्होंने ग्रहों के निर्माण के लिए तीन महत्वपूर्ण आधार बताएं हैं गुरुत्वाकर्षण शक्ति, यांत्रिक और भौतिक ऊर्जा और ऊष्मा मैं परिवर्तन।
नवतारा परिकल्पना
एफ हॉयाल तथा लिटीलटन ने अपनी परिकल्पना का प्रतिपादन 1939 में किया उनकी परिकल्पना परमाणु भौतिक से संबंधित थी ग्रहों के निर्माण में अधिकांश भारी तत्वों का योगदान रहा इनकी मात्रा ग्रहों में 98 प्रतिशत से अधिक है। किंतु तारों के निर्माण में मुख्य तत्व हाइड्रोजन है इसकी मात्रा ग्रहों में एक परसेंट से कम है हुए और लिटिल लेटर ने बताया कि हाइड्रोजन के जलने से बाहरी तत्वों की उत्पत्ति होती है।
किन्तु सूर्य जैसे साधारण तारे द्वारा हाइड्रोजन से केवल हीलियम की उत्पत्ति संभव हो सकती है भारी तत्वों के निर्माण के लिए हाइड्रोजन की जलने की क्रिया अधिक ऊंचे तापमान पर होने पर ही संभव होती है और अधिक ऊंचे तापमान केवल अभिनव सुपरनोवा तारों में पाया जाता है कोई तारा तभी अभिनव तारा बनता है जब उसमें जलने योग्य आवश्यक तत्व नहीं बचता। ऊष्मा और ऊर्जा का स्रोत हाइड्रोजन है।
महा विस्फोटक परिकल्पना विकासवादी सिद्धांत
इस सिद्धांत को बेल्जियम विद्वान जॉर्ज लेमैत्रे ने प्रस्तुत किया इस सिद्धत में उन्होंने यह बताया कि प्रारंभ में ब्रह्मांड में सारा पदार्थ एक अत्यंत सघन एवं विशालकाय प्रिमोडियल पदार्थ के रूप में स्थित था तथा इन पदार्थों और कर्ण में अत्यधिक संघन होने के कारण महा विस्फोट हुआ जिसे big-bang-theory कहां गया
एक तारा परिकल्पना इस परिकल्पना के आधार पर यह माना गया है कि सौर परिवार की उत्पत्ति एक ही तारे से हुई है इसे तारक परिकल्पना कहते हैं इस परिकल्पना के समर्थक कांट, लप्लास, लोलियार थे
कांत ने 1755 में इस परिकल्पना का प्रतिपादन किया जिसके अनुसार प्रारंभ में असंख्य आद्य पदार्थ या प्रीमोर्दियल मैटर के कण ब्रह्मांड में फैले हुए थे । तथा यह सभी का गुरुत्वाकर्षण के कारण आपस में टकराने लगे तथा इस टकराव से अत्यधिक मात्रा में ताप उत्पन्न हुआ और इस ताप के कारण द्रव्य गैसी अवस्था के रूप में परिवर्तित हो गया इसके बाद गैसीय केंद्रित हो जाने पर परिभ्रमण करने लगी। उनकी मान्यता थी की जैसे जैसे पुंज का आकार बढ़ने के साथ-साथ उसकी परिभ्रमण गति में भी वृद्धि हुई इस प्रक्रिया में नौ गोलाकार छल्ले बने जो कि निहारिका के रूप में अलग हो गए इससे नौ ग्रह तथा इनके उपग्रह बने और जो अवशिष्ट बचा वह सूर्य बना इसी प्रकार से सौर परिवार की रचना हुई इसलिए कांत ने कहा था मुझे मैटर दो मैं पृथ्वी की उत्पत्ति करके दिखाऊंगा।
लाप्लास की निहारिका परिकल्पना
लाप्लास से पूर्व कांट निहारिका परिकल्पना दे दी थी तथा कांति की ही परिकल्पना को संशोधित रूप का आधार बनाया । उन्होंने अपनी परिकल्पना में निहारिका की उत्पत्ति के विषय में कुछ भी नहीं कहा। लाप्लास कांट की परिकल्पना के इस अंश को हटा दिया और आद्य पदार्थों की टकराहट से उस में ताप एवं गति उत्पन्न हुई इस संशोधन से लाप्लास ने अपनी परिकल्पना को कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धांत संबंधित आलोचना से बचा लिया। गुरुत्वाकर्षण एवं ताप ह्रास के कारण यह निहारिका सिकुड़ने लगी जिससे ब्यास में कमी होने लगी । निहारिका की भारहीनता के कारण का यह वलय एक दूसरे से पृथक होने लगी तथा इन वलियों की ठंडी होने पर ग्रहों की रचना हुई। निहारिका का शेष भाग सूर्य के रूप में परिवर्तित हो गयादो तारक परिकल्पना बायनरी हाइपोथेसिस
इस परिकल्पना के अनुसार माना गया है। कि सौरमंडल की उत्पत्ति एक तारे से ना मिलकर अपितु दो तारों से हुई है इसे ही दो तारक परिकल्पना कहा जाता है। बीसवीं शताब्दी तक काफी नए तथ्यों की जानकारी प्राप्त हो चुकी थी। जिसके आधार पर जेम्स जींस, chamberlain, moulton जे फ्रिज रसेल आदि वैज्ञानिकों ने इस दो तारक परिकल्पना का समर्थन किया।जेम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना tidal hypothesis of James and jeans
जेम्स जींस ने सौर परिवार की उत्पत्ति के संबंध में ज्वारीय परिकल्पना को 1919 में प्रतिपादित किया। उनके अनुसार सूर्य अपने वर्तमान आकार से काफी बड़ा और गैस का गोला था। सूर्य से भी कई गुना बड़ा एक तारा अपने पथ पर चलता हुआ सूर्य के निकट से गुजरा जैसे-जैसे यह तारा निकट आने लगा सूर्य के बाहरी भाग में ज्वार उठने लगा। इस तारीख की सूर्य के निकट आने पर यह जो और अधिक प्रबल हो गया सिगार के आकार का ज्वारीय फिलामेंट करोड़ों किलोमीटर लंबाई तक विस्तृत हुआ तब यह फिलामेंट ना तो तारे के साथ जा सका और ना ही सूर्य से मिल सका। गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से यह सूर्य की परिक्रमा करने लगा । द्रव्य राशि पर सूर्य की गुरुत्वाकर्षण के कारण ही फिलामेंट के रूप में ग्रहों की रचना हुई।
चेंबर्लिन और मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना
इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति ग्रहाणु से हुई है इनकी मान्यता थी कि ब्रह्मांड में प्रारंभ में दो विशाल तारे थे एक सूर्य और दूसरा साथी विशाल तारा आरंभ में सूर्य का आकार वर्तमान सूर्य से बहुत बड़ा था जिसका एक साथी ही तारा अपने विशाल पथ पर घूम रहा था घूमते घूमते जब सूर्य से अधिक निकट पहुंच गया तब विशाल तारे की आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से निकला पदार्थ घूमते हुए तारों में नहीं मिल सका क्योंकि जब तक पदार्थ निकला तब तक तारा अपने पथ से आगे बढ़ गया और यह पदार्थ तारे की गुरुत्व सीमा से दूर हो गया इस स्थिति मेग्रहाणु सूर्य की परिक्रमा करने लगे। यह ग्रहाणु छोटे बड़े सभी आकार के थे बड़े ग्रहाणु ने केंद्र के रूप में काम किया और छोटे ग्रहाणु को अपनी ओर आकर्षित कर लिया धीरे-धीरे बड़े ग्रहाणु का आकार बढ़ता गया और वे ग्रह के रूप में निर्मित हो गए।
रसेल की परिकल्पना वायनरी स्टार हाइपोथेसिस ऑफ रसैल
रसेल ने युग्म तारा पर आधारित सिद्धांत का प्रतिपादन किया बहुत पहले सूर्य का एक साथी तारा था जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा लगा रहा था कुछ समय बाद विशालकाय तारा सूर्य के साथी तारे के पास आया इसके कारण साथी तारा से ज्वार उत्पन्न हुआ साथ ही तारे से उत्पन्न हुआ पदार्थ सूर्य की परिक्रमा करने लगा। तथा इस पदार्थ से ही ग्रहों की उत्पत्ति हुई।
नवीन परिकल्पना
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक थ्योरी
उन्होंने 1942 में विद्युत चुंबकीय शक्ति के द्वारा सौर परिवार की उत्पत्ति के बारे में समझाया इनके अनुसार सूर्य का यह चुंबकीय क्षेत्र आदि काल में वर्तमान की अपेक्षा कई हजार गुना अधिक रहा होगा उनकी यह धारणा भी थी कि वह सूर्य से पहले बड़ी परिभ्रमण कर रहा था तीव्र गति से परिवहन करते हुए सूर्य परमाणु के एक मेघ में जा पहुंचा इसमें के अणु विद्युत की दृष्टि से तटस्थ थे यह अणु सूर्य के चुंबकीय प्रभाव में आकर सूर्य की परिक्रमा करने लगी इस मे विस्तार वर्तमान समस्त ग्रहों के कुल फैलाव के बराबर था अणुओं के एकत्रित होने से विभिन्न ग्रह एवं उपग्रह बने।
धूल परिकल्पना आटो शिमिड
इस इस परिकल्पना के आधार पर ब्रह्मांड में गैस हैं एवं धूल के बादल इधर-उधर बिखरे हुए थे जिन से ही सौर परिवार के ग्रह की उत्पत्ति हुई ये गैस के धूल के कणो से अत्यधिक घनत्व के कारण गुरुत्वाकर्षण से आकर्षित होने पर ग्रहों का निर्माण हुआ। इन्होंने ग्रहों के निर्माण के लिए तीन महत्वपूर्ण आधार बताएं हैं गुरुत्वाकर्षण शक्ति, यांत्रिक और भौतिक ऊर्जा और ऊष्मा मैं परिवर्तन।
नवतारा परिकल्पना
एफ हॉयाल तथा लिटीलटन ने अपनी परिकल्पना का प्रतिपादन 1939 में किया उनकी परिकल्पना परमाणु भौतिक से संबंधित थी ग्रहों के निर्माण में अधिकांश भारी तत्वों का योगदान रहा इनकी मात्रा ग्रहों में 98 प्रतिशत से अधिक है। किंतु तारों के निर्माण में मुख्य तत्व हाइड्रोजन है इसकी मात्रा ग्रहों में एक परसेंट से कम है हुए और लिटिल लेटर ने बताया कि हाइड्रोजन के जलने से बाहरी तत्वों की उत्पत्ति होती है।
किन्तु सूर्य जैसे साधारण तारे द्वारा हाइड्रोजन से केवल हीलियम की उत्पत्ति संभव हो सकती है भारी तत्वों के निर्माण के लिए हाइड्रोजन की जलने की क्रिया अधिक ऊंचे तापमान पर होने पर ही संभव होती है और अधिक ऊंचे तापमान केवल अभिनव सुपरनोवा तारों में पाया जाता है कोई तारा तभी अभिनव तारा बनता है जब उसमें जलने योग्य आवश्यक तत्व नहीं बचता। ऊष्मा और ऊर्जा का स्रोत हाइड्रोजन है।
महा विस्फोटक परिकल्पना विकासवादी सिद्धांत
इस सिद्धांत को बेल्जियम विद्वान जॉर्ज लेमैत्रे ने प्रस्तुत किया इस सिद्धत में उन्होंने यह बताया कि प्रारंभ में ब्रह्मांड में सारा पदार्थ एक अत्यंत सघन एवं विशालकाय प्रिमोडियल पदार्थ के रूप में स्थित था तथा इन पदार्थों और कर्ण में अत्यधिक संघन होने के कारण महा विस्फोट हुआ जिसे big-bang-theory कहां गया
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