पर्यावरण अवकर्षण एन्वायरमेंटल डिग्रेडेशन पारिस्थितिकी छाप
पर्यावरण अवकर्षण एवं इसके प्रभाव और पर्यावरण पद चिन्ह
- मानव इस प्राकृतिक पर्यावरण का अभिन्न अंग है और वह अपने जन्म के साथ ही मानव प्राकृतिक संसाधनों का उपयोगकर्ता आ रहा है
- मानव के विकास के साथ ही इसका उपयोग बढ़ता जा रहा है तथा उद्योग एवं तकनीकी विकास के कारण इन संसाधनों के दोहन से पर्यावरण असंतुलन की समस्या उत्पन्न हो गई है।
पर्यावरण अपकर्षण क्या है?
- पर्यावरण अपकर्षण, पर्यावरण ह्रास, पर्यावरण अवनयन, पर्यावरण निम्नीकरण, पर्यावरण क्षरण आदि शब्द का मतलब एक ही अर्थ के लिए किया जाता है।
पर्यावरण क्षरण क्या है?
- इन सभी से अभिप्राय है किसी क्षेत्र में पर्यावरण विनाश की ऐसी प्रक्रिया जिससे भौतिक वातावरण के एक या एक से अधिक तत्वों की भौतिक प्रकृति में ह्रास होता है।
- अर्थात जब प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से पर्यावरण के किसी भी घटक के अनुपात या गुणवत्ता में परिवर्तन आता है तो वह अपने भौतिक गुणों के विपरीत प्रभाव डालने लगता है तथा पर्यावरण की इसी परिवर्तित स्थिति को पर्यावरण अवकर्षण (environmental degredation) कहा जाता है।
पर्यावरण अवकर्षण के कारण
- अगर देखा जाए तो पर्यावरण के निम्नीकरण में मानव द्वारा तथा प्रकृति दोनों परस्पर रूप से प्रभावित करती है।
- भौतिक या प्राकृतिक कारण। प्रकृति की अनेक क्रियाएं और कारक जिससे प्राकृतिक पर्यावरण की संरचना में परिवर्तन आए और यह पारिस्थितिक असंतुलन या संकट को उत्पन्न करें। इन क्रियाओं को प्राकृतिक प्रकोप या आपदा कहा जाता है।
- पर्यावरण की निम्नीकरण के लिए प्राकृतिक गतिविधियों में मुख्यतः सूखा, बाढ़, भूकंप, अपरदन, चक्रवात, मरुस्थलीकरण इत्यादि उत्तरदाई है।
- इस तरह के प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला अनादि काल से चला आ रहा है। किंतु वर्तमान में अत्यधिक नगरीकरण, औद्योगिकरण और विकास के चलते इसकी प्रकृति, प्रभाव और विस्तार में सघनता आई है।
- सुखा - सूखा एक प्राकृतिक आपदा है। जब किसी क्षेत्र में बरसात सामान्य से 26 से 50% तक कम होती है तो उसे सामान्य सूखा कहा जाता है और इससे भी कम वर्षा होने पर भयंकर सूखा या अकाल की स्थिति उत्पन्न होती है।
- संपूर्ण विश्व में 25% भाग प्राय सूखे की चपेट में है।
- भारत में लगभग 44% क्षेत्र सूखा से ग्रस्त है
- जिसमें राजस्थान अकाल व सूखा से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला राज्य है। भूमि पर जल की पर्याप्त मात्रा ना होने के कारण पर्यावरण में प्रभाव डालती है सूखा पर्यावरण असंतुलन के लिए उत्तरदाई होता है।
- बाढ़ - बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जिसमे बरसात सामान्य से अधिक हो जाती है जिसे अतिवृष्टि कहते हैं।
- जब अत्यधिक वर्षा के कारण जल अपने प्रवाह मार्ग जैसे नदी, नाला आदि में नहीं बहकर तटों को तोड़ता विस्तृत भू-भाग में पहुंच जाता है और मैदानी क्षेत्र में फैल जाता है। बाढ़ कहलाता है। विश्व का लगभग 3.5 प्रतिशत भाग बाढ़ ग्रस्त है।
- मुख्यतः मिसिसिपी मिसौरी, नाइजर, इरावदी, सिंधु, दजला फरात, ब्रह्मपुत्र ,कोसी आदि नदियों से प्रतिवर्ष भयंकर बाढ़ लाती है। भारत में गंगा के मैदान क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, बिहार )और ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा असम क्षेत्रों में भीषण बाढ़ का नजारा देखा जाता है। उदाहरण के लिए पिछले साल केरल में बाढ़
- मरुस्थलीकरण - यह एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय क्रियाकलापों से उपजाऊ भूमि, मरुस्थली भूमि में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रक्रिया से भूमि की उत्पादन क्षमता में कमी आती है।
- मरुस्थलीकरण के लिए विभिन्न कारक उत्तरदाई होते हैं। जैसे मृदा का ढाल, वायु अपरदन, शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्र, जलवायु, तापमान, नमी इत्यादि।
- भूकंप - भूकंप ऐसी विनाशकारी और आकस्मिक प्राकृतिक घटना है जिसके आगे आज मनुष्य तथा विज्ञान दोनों असहाय हैं। देखा जाए तो ज्वालामुखी का प्रभाव मात्र घटनास्थल के आसपास ही रहता है वही भूकंप की तरंगों का प्रभाव हजारों किलोमीटर तक आंका जाता है।
- रिपोर्ट के अनुसार विश्व मैं 13% मौतें भूकंप से होती हैं।
- भूकंप की उत्पत्ति भूगर्भ विवर्तन घटनाओं के कारण उत्पन्न होती है। विश्व में भूकंप मुख्यतः प्रशांत महासागर, एशियाई तट, आल्पस पर्वत से लेकर हिमालय पर्वत तक फैली मध्य महाद्वीपीय पेटी में आते हैं।
- भारत में सर्वाधिक भूकंप हिमालय क्षेत्र में आते हैं।
- ज्वालामुखी यह एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है। जब भूगर्भ से अत्यधिक ऊंचे तापमान पर लावा, गैस, राख इत्यादि पदार्थ विस्फोट के साथ निकलता हैं ज्वालामुखी कहलाता हैं।
- ज्वालामुखी क्रिया से जीव जंतु वनस्पति तथा मानव जनत निर्माण जैसे सड़क, भवन, खेत आदि पर अत्यधिक क्षति पहुंचती है। वर्तमान में भारत के अंडमान निकोबार दीप समूह में ही ज्वालामुखी उद्गार हुआ है।
- मृदा अपरदन - भूमि की ऊपरी सतह को मृदा कहते हैं। प्राकृतिक कारक जैसे वर्षा, हिम वायु आदि से मृदा में कटाव होता है जिसे मृदा अपरदन कहते हैं।
- मृदा अपरदन के लिए प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारक उत्तरदाई हैं तथा मृदा अपरदन मृदा की संरचना, नदी का मार्ग, ढाल की बनावट, वर्षा का वेग, वनस्पति, कृषि, पशु चारण, निर्माण कार्य, खनन इत्यादि पर निर्भर करता है।
- मृदा अपरदन का प्रभाव उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहां ढाल की तीव्रता और वर्षा की अधिकता एवं कम वनस्पति पाई जाती है। भारत में हिमालय क्षेत्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,राज्यों में मृदा अपरदन की गंभीर समस्या है।
- तूफान - तूफान और चक्रवात जैसी आपदाओं से प्राणियों के साथ-साथ आर्थिक नुकसान होता है वायुमंडल की सामान्य दशा में परिवर्तन के कारण तूफान आते हैं।
- इनके कारण चलने वाली प्रचंड हवाएं भारी मात्रा में वर्षा करती हैं। विश्व के विभिन्न भागों में टॉरनेडो ,कैटरीना, हरिकेन ,चक्रवात इत्यादि नामों से जाना जाता है।
- मानवीय कारण
- पर्यावरण की निम्नीकरण में प्राकृतिक कारकों का प्रभाव सीमित स्तर पर होता है तथा इनको नियंत्रण करना मानव के बस में नहीं होता है। लेकिन मानवीय क्रियाकलापों का प्रभाव व्यापक स्तर पर होता है।
- आज मानव अपनी भौतिक सुविधाओं और विकास के लिए, ऐसे अनेक कार्य कर रहा है जो पर्यावरण ह्रास में चिंता का विषय उत्पन्न करते हैं।
- मानव कृत क्रियाओं में वन विनाश, पेड़ों की कटाई, कृषि और पशुपालन, अधिक सिंचाई, जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिकरण नगरीकरण, बांधों का निर्माण, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, खनन इत्यादि सम्मिलित है।
- उपभोक्तावादी संस्कृति - इस दर्शन के अनुसार प्रकृति की समस्त वस्तुएं मनुष्य के लाभ के लिए बनाई गई तथा उन पर मनुष्यों का अधिकार है।
- मनुष्य को अपनी इच्छा अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिए इसी सोच के कारण पर्यावरण ह्रास और पर्यावरण असंतुलन की समस्या उत्पन्न हुई है।
- आज हम नगरीकरण, औद्योगिक विकास इत्यादि क्रियाओं में लिप्त होकर पर्यावरण का क्षरण कर रहे हैं इससे पर्यावरण में असंतुलन और संकट की स्थिति उत्पन्न हो रही है ।
- वन विनाश या पेड़ों की कटाई - वन पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक है वृक्षों की कटाई तथा अन्य कारणों से क्षेत्र में कमी आने से वानो का विनाश हो रहा है।
- लोग इमरती लकड़ियों से मकान की सजावट, निर्माण कार्यों के लिए जैसे सड़क, रेल मार्ग, नहर इत्यादि के लिए वनीकृत क्षेत्रों क्षेत्रों से पेड़ की कटाई की जा रही है जो पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- विश्व में कुल वन क्षेत्र 1900 से 2000 सन के बीच वन क्षेत्र 700 करोड़ हेक्टेयर से घटकर 237 करोड़ हेक्टेयर रह गया।
- कृषि - कृषि क्षेत्र के विस्तार तथा कृत्रिम साधनों से गहन कृषि उत्पादन ने पर्यावरण क्षरण में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई है।
- बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्राकृतिक घास स्थल, वनो को साफ करके कृषि भूमि का विस्तार किया गया है।
- सघन कृषि तथा कृषि विस्तार से अनेक पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं जैसे उत्पादकता में कमी, मृदा में लवणता और अमलता, जैविक तत्व में कमी इत्यादि
- पशु पालन - पर्यावरण ह्रास के लिए अत्यधिक पशु चारण भी उत्तरदाई है। सघन वनों की सीमावर्ती क्षेत्रों में चारागाह का विस्तार हो रहा है।
- तथा इस निरंतर विस्तार से अनेक वन क्षेत्र चारागाह के रूप में परिवर्तित हो गए। इससे मृदा अपरदन की जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही है। विश्व की लगभग 19% पशु संख्या भारत में है। तथा जनसंख्या वृद्धि की समस्या से जूझते हुए भारत देश में पशुओं की संख्या एक अन्य प्रमुख समस्या खड़ी हो गई है। जिससे पर्यावरण पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
- सिंचाई व्यवस्था - कृषि कार्यों को निरंतर जलापूर्ति के लिए मानव ने सिंचाई की नई तकनीकी का विकास किया है। जैसे बांध बनाकर, नदियों से नहर निकालकर इत्यादि से सिंचाई की उत्तम व्यवस्था अपनाई है जिससे कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है। किंतु सिंचित क्षेत्रों में जल प्रबंधन की अभाव से लवणीकरण, क्षारीयता, जल प्लावन जैसी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई है। परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र में तो वृद्धि हुई है। किंतु भूमि का जल स्तर तीव्र गति से नीचे जाने लगा है। तथा कृषि में दोषपूर्ण सिंचाई प्रणाली अत्यधिक जल दोहन कुछ क्षेत्रों में पर्यावरण हास का कारण है।
- जनसंख्या वृद्धि - पर्यावरण हास का मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि है। विश्व की जनसंख्या को प्रथम 100 करोड़ तक पहुंचने में 33 वर्ष लगे। और विश्व की जनसंख्या 1960 में 300 करोड़ हो गई। और आगे के 100 करोड़ तक पहुंचने में मात्र 14 वर्ष लगे। वर्ष 2000 में विश्व की जनसंख्या 6 अरब से अधिक हो गई अर्थात अंतिम 100 करोड़ जनसंख्या मात्र 12 वर्षों में हो गई।
- इतनी तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या से भोजन, आवास, भूमि, जलापूर्ति, खाद्य और प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ता जा रहा है। जो पर्यावरण असंतुलन की समस्या उत्पन्न कर रहा है। बढ़ती जनसंख्या के साथ कुपोषण, भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी इत्यादि समस्याएं उत्पन्न है।
- नगरीकरण - जनसंख्या वृद्धि में तेजी आने से कृषि भूमि पर अतिक्रमण प्रदूषण गंदगी अवशिष्ट कूड़ा करकट जल संकट इत्यादि समस्याएं उत्पन्न हुई है इन सब समस्याओं का कारण में नगरीकरण की भूमिका रही है।
- औद्योगिक क्रांति के पश्चात विश्व में नगरीकरण की तीव्र गति हो गई। लोग रोजगार और अन्य सुविधाओं प्राप्त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर प्रवाह करने लगे।
- औद्योगिकरण - बढ़ते औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों के कारण विकसित और विकासशील देश में पर्यावरण का ह्रास हुआ है औद्योगिक क्रांति के पश्चात यूरोप के साथ विश्व के अन्य भागों में बड़े पैमाने पर औद्योगिक केंद्रों की स्थापना हुई।
- तथा कच्चे माल की आपूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का तीव्र गति से दोहन किया गया। जिससे आज पर्यावरण असंतुलित हो गया है और यह एक बहुत बड़ी समस्या और चिंता की बात है। इससे ऊर्जा, जल, मृदा, एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों इत्यादि पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
- तकनीकी विकास - बीसवीं शताब्दी में मानव ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में जो प्रगति की है उसका लाभ उद्योग कृषि परिवहन चिकित्सा आदि क्षेत्रों को प्राप्त हुआ है
- लेकिन नई तकनीक से निर्मित विभिन्न सामग्रियां या उपकरण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डाल रहे हैं आज पर्यावरण से संबंधित कई समस्याएं उत्पन्न हो रही है जैसे प्लास्टिक, कचरा ,जलवायु ,परिवर्तन, ओजोन परत में छेद, वैश्विक तापमान में वृद्धि इत्यादि।
- पर्यावरण क्षरण के प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन
- वैश्विक तापमान में वृद्धि
- बर्फ का पिघलना
- कृषि पर प्रभाव
- स्वास्थ्य पर प्रभाव
- जीव जंतुओं और वनस्पतियों पर प्रभाव
- पर्यावरण असंतुलन
- परिस्थिति तंत्र में हास
- मानसून में विलंब
- महासागरीय धाराओं में परिवर्तन
- अलबेडो में अंतर
पर्यावरणीय छाप या पारिस्थितिकी पद चिन्ह/छाप क्या है
enivronmenatal footprint in hindi
- ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका बेल्जियम और स्विजरलैंड द्वारा बनाया गया एक थिंक टैंक है जिसे 2003 में बनाया गया। इसका मुख्यालय कैलिफोर्निया में अवस्थित है। यह एक गैर लाभकारी संगठन है। वैश्विक फुटप्रिंट नेटवर्क पारिस्थितिकी पद चिन्ह और जेब क्षमता सहित स्थिरता को आगे बढ़ाने के लिए बनाया गया है। यह हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले संसाधनों की क्षमता एवं मात्रा को मापता है। कि हमारे पास कुल कितने संसाधन है और हम कितना इनका उपयोग कर रहे हैं।
पर्यावरणीय छाप या पारिस्थितिकी पद चिन्ह
Enivronmenatal footprint in hindi
- पारिस्थितिकी छाप पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र पर मनुष्यों की मांग को मापता है और यह पारिस्थितिकी लेखा प्रणाली के माध्यम से यह पता लगाता है कि मानव की मांग की तुलना में,पृथ्वी की पारिस्थितिकी पुनर उत्पादन जैव क्षमता कितनी है यह उसे ज्ञात कर उसका मूल्यांकन और विश्लेषण करता है। जिसे पर्यावरण छाप कहते हैं।
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