बल
बल क्या है
बल एक सदिश राशि है अर्थात इसका परिमाण एवं दिशा होती है जो किसी वस्तु की विराम अवस्था या सरल रेखा में समान गति की अवस्था को परिवर्तित कर सकती हैं। बल का मात्रक न्यूटन होता है।
बलों के प्रकार
गुरुत्वाकर्षण बल-ब्रह्मांड का प्रत्येक कण एक दूसरे को केवल अपने द्रव्यमान के कारण ही आकर्षित करते हैं। इसी प्रकार पृथ्वी पर प्रत्येक वस्तु एक दूसरे को आकर्षित करती हैं अर्थात किन्हीं दो कराओ की बीच इस प्रकार के आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं।
विद्युत चुंबकीय बल दो प्रकार का होता है
स्थिर विद्युत बल -दो स्थिर बिंदु आवेश के बीच लगने वाला बल स्थिर विद्युत बल कहलाता है।
चुंबकीय बल -दो चुंबकीय धर्मों के बीच लगने वाला बल चुंबकीय बल कहलाता है विद्युत एवं चुंबकीय बल एक ही प्रक्रिया के दो रूप हैं जो विद्युत चुंबकीय बल की रचना करते हैं और यह फोटॉन कणों के माध्यम से कार्य करते हैं।
दुर्बल या क्षीण बल -जिस रेडियो एक्टिव क्षय की प्रक्रिया में बीटा का निकलते हैं उसे बीटा क्षय कहते हैं। इस प्रक्रिया में नाभिक के अंदर एक न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और एंटीन्यूट्रिनो के रूप में विचलित होते हैं।
प्रबल बल या नाभिकीय बल -नाभिक के अंदर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक दूसरे के इतने पास होते है। फिर भी वे एक दूसरे से प्रतिकर्षण द्वारा दूर नहीं हो पाते क्योंकि उनके बीच एक बहुत शक्तिशाली आकर्षण बल कार्य करता है जिसे प्रबल बल कहते हैं।
अभिकेंद्रीय बल तथा अपकेंद्रीय बल
अभिकेंद्रीय बल - जब एक गतिशील पिंड किसी वृत्तीय पथ पर बल की दिशा केंद्र की ओर होती है तो इसे अभिकेंद्रीय बल कहते हैं। अर्थात जब कोई कण एक समान चाल से त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर त्वरण की दिशा केंद्र की ओर होती है।
अपकेंद्रीय बल -यह न्यूटन की गति के तीसरे नियम के अनुसार समझा जा सकता है अर्थात इस बल के बराबर बल विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया बल लगता है जो केंद्र से बाहर की ओर लगता है इसे अपकेंद्रीय बल कहते हैं। यह एक छद्म बल है।
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