प्रयोजनवाद का सिद्धांत यह विचारधारा सभी विचारधाराओं में अधिक महत्वपूर्ण है प्रयोजनवाद के जन्मदाता चार्ल्स पियर्स है। इनके अलावा अन्य विचारकों ने भी इस विचारधारा पर मानव जीवन के व्यवहारिक पक्ष तथा अनुभव युक्त ज्ञान पर विशेष बल दिया है। जॉन डीवी और किलपैट्रिक ने शिक्षा को प्रयोजन वादी स्वरूप प्रदान करके नया रूप प्रदान किया है। प्रयोजनवाद ऐसे विचार पर विश्वास करता है जो सभी प्रकार के मूल्य, आदर्श विचारों एवं निर्णय की सत्यता उनके निष्कर्ष के आधार पर निर्भर करते हो। प्रयोजनवाद क्या है Pragmatism in hindi प्रयोजनवाद pragmatism मुख्य रूप से ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ प्रैक्टिकल या हिंदी भाषा में इसका अर्थ व्यवहारिक है प्रयोजनवाद को व्यवहारवाद भी कहते हैं प्रयोजनवाद और सत्यता प्रयोजनवाद जीवन की व्यवहारिकता और आचरण पर अधिक बल देता है और यह मानता है कि जो प्रयोग में लाया जा सके या जिसकी जांच की गई है वही वास्तविक और सत्य है तथा हम इस सिद्धांत के अनुसार सत्यता या वास्तविकता को गहनता से समझ पाते है। रॉस के अनुसार प्रयोजनवाद एक मानवीय दर्शन है जो यह मानता है कि मनुष्य अपने जीवन...
बुद्ध जी का सामान्य परिचय: भारतीय धर्म के इतिहास में बुद्ध धर्म का इतिहास अद्वितीय रहा है इस धर्म का उद्भव छठी शताब्दी ईसा पूर्व महात्मा बुद्ध द्वारा किया गया बुद्ध जी का जन्म 563 ईसा पूर्व शाक्य गणराज्य के लुंबिनी वर्तमान रुद्रदामन वन नेपाल में हुआ । इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था । इनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्य गणराज्य के प्रधान थे बुद्ध जी की मां का नाम महामाया था जो कोलीय गणराज्य की कन्या थी । बुद्ध जी के जन्म के सातवें दिन ही इनकी माता महामाया का निधन हो गया और इसके बाद इनका पालन-पोषण इनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी ने किया । कहा जाता है कि बुद्ध जी के जन्म पर कॉल देवल नामक तपस्वी और काेंडिय ब्राह्मणों ने साथ मिलकर एक भविष्यवाणी की थी कि आपका बेटा बड़ा होकर चक्रवर्ती शासक बनेगा या फिर एक महान सन्यासी बनेगा । बुद्ध जी ने 29 वर्ष की आयु में अपना गृह त्याग दिया जिसे महाभिनिष्क्रमण कहां गया और बुद्धिजी को बोधगया में निरंजना नदी के निकट पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई इसे संबोधी के नाम से जाना जाता है । इसके उपरांत बुद्ध जी ने सारनाथ में जाकर मानवता के ...
कबीर कबीर 15 वी शताब्दी के रहस्यवादी कवि और संत है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ एवं मृत्यु मगहर में हुई। कबीर किसके समकालीन थे कबीर सिकंदर लोदी के समकालीन थे। कबीर (हिंदीसाहित्य) भक्ति काल के ज्ञानाश्रीय निर्गुण काव्य शाखा के प्रवर्तक थे। उनकी वाणी से बहुत से सत्य और उनके कार्यों की जानकारी मिलती है और वह हिंदू और मुस्लिम एकता के समर्थक थे। कबीर के उपदेश रेमनी, सबद और सखियों के जरिए उन्होंने हिंदू और मुस्लिम को उपदेश दिए। वे किसी के साथ पक्षपात नहीं करते थे। उन्होंने सबके भले के लिए उपदेश देते हुए,तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियां, अनुष्ठान और अंधविश्वासों की कड़ी आलोचना की है। 17 वी शताब्दी से पहले यह कहानी सुनाई जाती थी कि संत कबीर रामानंद के शिष्य थे जिनके कारण मजहिब के लेखकों ने उन्हें वैष्णव बैरागी माना है। उनका झुकाव वैष्णो मत की ओर था जिसका मुख्य कारण था कि उन्होंने ईश्वर को राम वंश माना। परंतु उनके काव्य में राम के परिवार या देवताओं का उल्लेख नहीं मिलता। कबीर का एकेश्वरवाद कबीर ऐसे एकेश्वरवाद की स्थापना करते हैं जिसमें ईश्वर के प्र...
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