प्लेटो का आदर्श राज्य का सिद्धांत,काव्य का सिद्धांत, न्याय का सिद्धांत, दार्शनिक राजा का सिद्धांत, साम्यवाद का सिद्धांत एवं प्लेटो की पुस्तकें
प्लेटो कौन थे
प्लेटो यूनान के महान दार्शनिक थे। इनका जन्म 428 ईसा पूर्व एथेंस के समीप इजीना नामक द्वीप पर हुआ था। प्लेटो के पिता अरिस्टोन एथेंस के अंतिम राज्य कोट्स के वंश के थे और माता का नाम पेरिक्टोन था।
प्लेटो का वास्तविक नाम क्या था
प्लेटो का वास्तविक नाम अरिस्टोक्लीस था। उनके लंबे कंधे, हष्ट पुष्ट एवं सुंदर शरीर के कारण उनके शिक्षक उन्हें प्लेटो कहते थे।
प्लेटो के गुरु कौन थे?
प्लेटो के गुरु सुकरात थे। तथा सुकरात, प्लेटो और अरस्तु ने मिलकर पश्चिमी संस्कृति का दार्शनिक आधार को बनाया।
द एकेडमी की स्थापना किसने की?
प्लेटो ने द एकेडमी की स्थापना की और यह एकेडमी पश्चिमी सभ्यता का पहला उच्च शिक्षा का केंद्र था।
प्लेटो का जीवन परिचय
प्लेटो देखने में बहुत ही सुंदर और हष्ट पुष्ट दिखते थे प्लेटो एक कुलीन वर्ग से आते थे इसलिए उनका पालन पोषण अच्छा हुआ।
उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। सुकरात की तरह ही प्लेटो ने अपने देश की सेना में सराहनीय योगदान दिया।
वह 20 वर्ष की अवस्था में 406 ईसा पूर्व सुकरात के संपर्क में आए और वह सुकरात के प्रिय शिष्य बन गए। किंतु उनके गुरु सुकरात को जब विष का प्याला दिया गया इससे वह बेहद ही दुखी हुए। इस घटना के कारण उन्होंने एथेंस को छोड़ने का निर्णय लिया ।
वह सुकरात की मृत्यु के उपरांत एथेंस के समीप मगरा शहर चले गए। यहीं से प्लेटो की जिंदगी का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ।
मगरा में उनका मित्र यूक्लिड रहता था जो एक गणितज्ञ था। उन्होंने अपने मित्र की सहायता से पार्मेंडिस के सिद्धांत का अध्ययन किया।
वह लगभग 12 वर्षों तक विदेश घूमते रहे। और वह मिस्त्र, यूनान, भारत के गंगा तट पर भी ठहरे । तथा जब वह वापस लौटे तो उन्होंने 380 ईसा पूर्व में द एकेडमी की स्थापना की। और यह एकेडमी संपूर्ण पश्चिमी जगत का प्रथम विश्वविद्यालय था। प्लेटो अपने जीवन के आदर्शों को उतारने में सफल हुए।
वह लगभग 12 वर्षों तक विदेश घूमते रहे। और वह मिस्त्र, यूनान, भारत के गंगा तट पर भी ठहरे । तथा जब वह वापस लौटे तो उन्होंने 380 ईसा पूर्व में द एकेडमी की स्थापना की। और यह एकेडमी संपूर्ण पश्चिमी जगत का प्रथम विश्वविद्यालय था। प्लेटो अपने जीवन के आदर्शों को उतारने में सफल हुए।
प्लेटो की अंतिम रचना कौन सी थी?
जीवन का अंतिम समय में उन्होंने अपने अंतिम ग्रंथ ' लीज ' की रचना में बिताया।
प्लेटो एक कवि
- प्लेटो महान दार्शनिक होने के साथ-साथ एक महान कवि थे। वह अपनी युवावस्था से ही कविताओं की रचना करने लगे थे।
- बाद में उन्होंने काव्य लिखना सीख लिया था। उन्होंने अपने संवादों में रोचक तरीके से प्रभावपूर्ण चिंतन किया।
- उनके लेखों में कल्पना और अलंकार का समावेश मिलता है। उदाहरण के लिए अपॉलॉजी में उनके संवादो से सुकरात पर लगाए गए आरोपों का वर्णन है।
प्लेटो का न्याय सिद्धांत
- प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक की शुरुआत न्याय की धारणा से करते हैं। तथा रिपब्लिक का मुख्य विषय न्याय व उपशीर्षक न्याय से संबंधित है। प्लेटो न्याय शब्द का प्रयोग कानूनी अर्थ की जगह नैतिक अर्थों में किया है।
- प्लेटो से पहले न्याय का सिद्धांत दिए गए थे। परंपरागत सिद्धांत( ट्रेडिशनलथ्योरी )को सिफालिस ने दी।
- सिफालिस के अनुसार न्याय का अर्थ सत्य बोलना व ॠण loan को चुकता करना है। प्लेटो इस सिद्धांत को स्वीकार नहीं करते। न्याय केवल सत्य बोलने और दूसरों के ऋण अदा करने में नहीं होता। कभी-कभी राजा को राज्य के हित के लिए असत्य भी बोलना पड़ता है। कई बार ऐसी परिस्थितियां होती है कि ऋण को अदा नहीं किया जा सकता है। ऐसे में वह अन्याय पूर्ण व्यक्ति कहलाएगा। लेकिन यह कहना गलत होगा।
- क्रांतिकारी सिद्धांत को थ़ेलीमेकस ने दिया। उनका मानना था कि एक अन्याय व्यक्ति, न्याय व्यक्ति की अपेक्षा अधिक सुखी एवं श्रेष्ठ होता है।प्लेटो इस विचार का खंडन करते हुए कहते हैं की न्यायशील व्यक्ति ही आदर्श जीवन को प्राप्त कर सकता है। वह थ़ेलीमेकस के विचारों के विपरीत थे
- इसके बाद कार्य कारण सिद्धांत को ग्लाकन ने दिया। वह कहते थे की न्याय एक कृत्रिम वस्तु है जिसकी स्थापना मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए की है। और मानते थे कि न्याय की उत्पत्ति समझौते से होती है। अतः न्याय भय का शिशु है।
प्लेटो का न्याय सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार प्लेटो ने न्याय को आत्मा के अंदर की वस्तु माना है। और वह कहते थे मानव की आत्मा का सर्वश्रेष्ठ गुण न्याय हैं।
प्लेटो न्याय की अभिव्यक्ति दो स्तर पर करते हैं। व्यक्तिगत और सामाजिक।
व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्ति अपने आदर्श पूर्ण चरित्र का निर्माण करता है। वहीं सामाजिक स्तर पर वह आदर्श समाज बनाने में सहायता करता है।
प्लेटो के मानव की आत्मा कितने गुण बताएं
- प्लेटो मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करते हुए कहते हैं कि मानव की आत्मा में मुख्य रूप से 3 गुण होते हैं। सुधा, साहस और विवेक।
- तथा जब यह तीनों गुण मानव में समाहित होते हैं तभी व्यक्ति न्याय का पालन कर सकता है।
- प्लेटो ने व्यक्ति के इन तीन गुणों के अनुरूप समाज को भी तीन वर्गों में बांटा गया उत्पादक वर्ग, सैनिक वर्ग और शासक वर्ग। जब शासक सैनिक और उत्पादक वर्ग अपने कर्तव्य को बिना स्वार्थ करते हुए पालन करेंगे तभी राज्य में न्याय बना रह सकता है।
- प्लेटो के न्याय सिद्धांत के दोष
- प्लेटो शासक की संपूर्ण शक्तियां दार्शनिक राजा को सौंपना चाहते हैं लेकिन इससे भ्रष्टाचार और निरंकुशता जैसी समस्या उत्पन्न होती है।
- प्लेटो ने मानव के गुणों के आधार पर समाज को 3 वर्गों में बांट तो दिया लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि उन में कौन-कौन से गुण होने चाहिए। व्यक्ति की बाल अवस्था से वृद्धावस्था तक परिवर्तन आता है इससे उनके अंदर गुणों में भी परिवर्तन आता है।
- प्लेटो ने कर्तव्यों पर अधिक बल दिया है। व्यक्तिगत अधिकार के बारे में कुछ नहीं कहा।
प्लेटो का दार्शनिक राजा का सिद्धांत
- प्लेटो न्याय के लिए एक आदर्श राज्य की कल्पना करते हैं। तथा इस आदर्श राज्य में एक दार्शनिक राजा होगा। वह शासन करेगा।
- प्लेटो कहते थे की न्याय प्रिय राज्य तभी स्थापित हो सकता है जब शासन सत्ता विवेकपूर्ण हाथों में हो। प्लेटो का दार्शनिक शासक राज्य के हितों में ही स्वयं का हित समझता है। उसके स्वयं की कोई हित नहीं होते हैं तथा दार्शनिक राजा कर्तव्य होगा कि वह अपनी प्रजा का ध्यान रखें और उन्हें सुरक्षा प्रदान करे।
प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत
- प्लेटो के अनुसार न्याय और आदर्श स्थापित करने के लिए दो महत्वपूर्ण बातें आवश्यक हैं पहला सुनियोजित शिक्षा प्रणाली द्वितीय साम्यवादी सामाजिक व्यवस्था।।
- प्लेटो कहते थे कि शिक्षा से मानव का सर्वांगीण विकास होता है। तथा शिक्षा से ज्ञान और सद्गुण की प्राप्ति होती है। जिसके आधार पर ही आदर्श राज्य की स्थापना संभव है।
- प्लेटो के समय काल में शिक्षा की दो पद्धतियां व्याप्त थी एथेंस और स्पार्टा।।
- प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना में दोनों पद्धतियों के गुणों को समाहित किया है।
- वह कहते थे कि शिक्षा एक पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है तथा शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए और उसके ऊपर राज्य का नियंत्रण होना चाहिए। प्लेटो ने शिक्षा को दो भागों में बांटा है पहला प्रारंभिक शिक्षा और दूसरा उच्च शिक्षा।
- प्रारंभिक शिक्षा में प्रथम 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए नैतिक और धार्मिक शिक्षा का प्रावधान रहना चाहिए।
- वहीं 7 से 20 वर्षों तक के बच्चों के लिए शारीरिक और मानसिक शिक्षा का अध्ययन होना चाहिए।
- उच्च शिक्षा को भी दो भागों में बांटा है 20 से 30 वर्ष और 30 से 40 वर्ष के बीच व्यक्ति को गणित, नीति शास्त्र, ज्योतिष, दार्शनिक आदि विषय का अध्ययन करना चाहिए।
प्लेटो का साम्यवाद सिद्धांत
प्लेटो ने साम्यवाद का सिद्धांत क्यों दिया।
प्लेटो एक आदर्शवादी व्यक्ति थे वह आदर्श राज्य की स्थापना करना चाहते थे। प्लेटो कहते थे कि व्यक्तियों में सद्गुण को तो उत्पन्न किया जा सकता है लेकिन समय के अनुसार उसमें परिवर्तन आता है जिससे राज्य को हानि होगी। तथा वे आदर्श राज्य को बनाए रखने के लिए साम्यवादी सिद्धांत की अवधारणा को देते हैं। प्लेटो ने आदर्श राज्य की स्थापना न्याय के आधार पर करने के लिए एक साधन के रूप में संपत्ति तथा परिवार के साम्यवाद की व्यवस्था बनाई।
संपत्ति का साम्यवाद
- संपत्ति के साम्यवाद के अंतर्गत प्लेटो ने कहा है कि अभिभावक वर्ग को किसी भी प्रकार की निजी संंपत्ति नहीं रख सकेेेगे।
परिवार का साम्यवाद
- परिवार के साम्यवाद द्वारा सामाजिक न्याय स्थापित करने के लिए अभिभावक वर्ग को अपने परिवार के दूर रहना होगा। क्योंकि परिवार के मोह, प्रेम और संबंध से शासन करने में अड़चने होती हैं और आदर्श राज्य स्थापित करने में बाधा डालती है।
- साम्यवाद के द्वारा प्लेटो शासक वर्ग को व्यक्तिगत संपत्ति एवं पारिवारिक चिंताओं से मुक्त करना चाहते थे क्योंकि जब तक शासक और संपत्ति वर्ग अपनी पारिवारिक चिंताओं से मुक्त नहीं रहेगा तब तक वह राज्य के हित में फैसले नहीं ले पाएंगे।
- प्लेटो सैनिक व शासक वर्ग को प्लेटो अभिभावक वर्ग कहते है। तथा साम्यवाद में उत्पादक वर्ग को शामिल नहीं किया गया।
- प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था स्पार्टा से प्रभावित थी।
प्लेटो के साम्यवाद 3 आधार
- दार्शनिक आधार
- मनोवैज्ञानिक आधार
- राजनीतिक आधार
- दार्शनिक आधार के माध्यम से प्लेटो शासन व्यवस्था को उत्तम और दक्ष बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कार्य विशेषीकरण का सिद्धांत दिया। कार्य विशेषीकरण से तात्पर्य है जो जिस कार्य में सक्षम हो उसे वही कार्य करना चाहिए। उदाहरण के लिए शिक्षक को शिक्षा देना चाहिए और अन्य काम नहीं करना चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक आधार के माध्यम से प्लेटो ऐसी व्यवस्था करना चाहते थे कि अभिभावक वर्ग अपने कर्तव्यों का निर्वहन निस्वार्थ रूप से कर सकें। इसलिए वह उन्हें संपत्ति और पारिवारिक चिंताओं से मुक्त रखना चाहते थे।
- राजनीतिक आधार पर प्लेटो शक्ति के केंद्रीकरण पर रोक लगाते हैं और वह विकेंद्रीकरण पर अधिक बल देते हैं। तथा वह आर्थिक और राजनीतिक शक्तियां को एक ही हाथ में सौंपने में विरोध करते हैं।
प्लेटो का आदर्श राज्य
- प्लेटो के अनुसार आदर्श राज्य स्थापित करने के लिए निम्न विशेषताएं होनी चाहिए।
- न्याय पर आधारित राज्य
- शिक्षा व्यवस्था
- कार्य विशेषीकरण का सिद्धांत
- साम्यवाद
- दार्शनिक राजा का शासन
- सबके लिए समान अधिकार
प्लेटो का प्रत्यय सिद्धांत
Theory of idea's of plato in hindi
- जब हम इंद्रियों के द्वारा ज्ञान की प्राप्ति करते हैं तो उसे प्रत्यय (आइडिया) कहा जाता है। यानी हम किसी वस्तु के बारे में जो ज्ञान होता है वह वास्तव में एक आइडिया होता है।
- जैसे हम किसी फूल को देखकर समझ जाते हैं कि वह कौन सा फूल है। यह हमें इंद्रियों के द्वारा हमारे दिमाग में व्याप्त छवि के आधार पर पता चलता है।
- ज्ञान क्या है? सत्य क्या है ज्ञान का मूल स्रोत क्या है जगत क्या है इत्यादि मूलभूत प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्लेटो ने प्रत्यय सिद्धांत को प्रस्तुत किया।
- प्लेटो का प्रत्यय सिद्धांत उनके दर्शन का केंद्र बिंदु है।वह मानते थे कि किसी भी चीज का एक आदर्श स्वरूप यानी प्रत्यय होता है। वह एक आदर्शवादी थे इसलिए वह आदर्श फॉर्म को सोचते हुए उसकी कल्पना करते थे।
- जैसे एक आदर्श न्याय कैसा होना चाहिए।उसमें कौन सी विशेषताएं होनी चाहिए। न्याय का आधार क्या होना चाहिए। इस प्रकार वह 2 जगत की स्थिति को स्वीकार करते हैं
- प्रथम दृश्य जगत जो कि परिवर्तनशील है।
- द्वितीय प्रत्यय का जगत। प्लेटो प्रत्यय जगत को वास्तविक जगत कहते है। क्योंकि यह जगत स्थिर है इसमें कोई भी परिवर्तन नहीं आता, इसमें सभी चीजों का आदर्श प्रत्यय है। और वह हमारी दुनिया को वह एक परछाई मात्र मानते है।
- प्लेटो प्रत्यय जगत की वास्तविकता को समझाने के लिए एलिगिरी आफ केव के रूपांकन से समझाने का प्रयास करते हैं।
एलिगिरी आफ केव इन हिंदी
- यह कथा का उल्लेख प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक से मिलता है।जिसमें उन्होंने प्रत्यय के ज्ञान को समझाने का प्रयत्न करते है।
- प्लेटो के अनुसार कुछ व्यक्ति बचपन से ही एक गुफा में रह रहे है। उनके हाथ, पैर और गला जंजीरों से बंधा हुआ है। तथा वह चाहके भी पीछे मुड़कर नहीं देख सकते। वे केवल सामने वाली दीवार को देख सकते हैं। उनसे पीछे कुछ दूरी पर ऊपर आग जल रही है। उस आग के कारण कुछ परछाइयां सामने वाली दीवार पर दिखाई दे रही है। तथा इन लोगों को यह सब वास्तविक लगता है। वह इसी को अपना संसार समझते हैं। लेकिन उनको यह नहीं पता चलता कि कुछ लोग पुतले को लेकर जाते हैं जिससे सामने वाली दीवाल पर आग से परछाइयां बनती है। यदि इनमें से किसी एक को जंजीर से अलग कर दिया जाए तो वह यह देखकर बहुत ही अचंभित हो जाएगा। और वह सोचेगा कि अभी तक जो वह देख रहा था वह सब एक परछाई मात्र थी। वास्तविकता तो इससे बहुत ही अलग है। वह गुफा से बाहर आएगा तो वह समझ पाएगा की रोशनी से ही परछाइयां बनती है।अर्थात हम में से अधिकांश व्यक्ति गुफा के कैदियों के समान जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। और हम अनुभव को वास्तविक मान लेते हैं जबकि दृश्य जगत की वस्तुएं वास्तविक नहीं है प्लेटो प्रत्यय जगत को वास्तविक जगत मानते हैं तथा प्रत्यय का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान। अतः शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को उसकी अज्ञानता की जंजीरों से मुक्त दिला कर उन्हें वास्तविकता को समझाने का प्रयास करना।
प्लेटो का काव्य सिद्धांत
- प्लेटो से पहले होमर और हेशियन ने काव्य के बारे में विचार दिए थे। उनका कहना था की काव्य का लक्ष्य शिक्षा और आनंद प्रदान करना है।
- प्लेटो का होमर के प्रति श्रद्धा भाव था लेकिन काव्य के संबंध में उन्होंने होमर की कड़ी आलोचना की। उस समय के सभी कवियों का अध्ययन करने के बाद उनका मानना था कि काव्य समाज का विरोधी है। क्योंकि काव्य समाज का हित नहीं करता।
- प्लेटो ने अपनी किताब रिपब्लिक में लिखा है कि वह सत्य के पक्षधर होने के कारण बौद्धिक आनंद का समर्थन करते हैं इंद्रिय आनंद का नहीं। उदाहरण के लिए अगर हम काव्य पढ़ते हैं तो हमें अंदर से सुकून मिलता है इसलिए प्लेटो ने इंद्री आनंद को अस्वीकार कर दिया था। और इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण था क्योंकि उस समय समाज के गिने-चुने लोग जो सामंत थे उनके पास देश का संपूर्ण शासन था। उस समय एथेंस की युवक व युवतियां भोग और विलासिता में डूबे हुए थे। तथा उस समय काव्य मनोरंजन के लिए लिखा जाता था। प्लेटो का मानना था कि दो कारणों से कविता की रचना करता है या तो कवि यस कमाना चाहता है या फिर धन कमाना चाहता है। प्लेटो काव्य को अभिव्यक्ति नहीं मानकर अनुकरण का भी अनुकरण मानते है। उदाहरण के लिए ईश्वर सत्य है ईश्वर ने एक आदर्श पलंग बनाया, उसके बाद बढ़ाई ने उस पलंग की परिकल्पना करने के बाद एक नया पलंग बनाता है, फिर उसके बाद अन्य बढ़ाई बहुत सारे पलंग को बनाये। आप सोचिए सत्य क्या था? ईश्वर द्वारा बनाया गया आदर्श पलंग सत्य था! और बढ़ई ने ईश्वर का अनुकरण करके पलंग बनाया फिर अन्य बढ़ई ने अनुकरण किया और पलंग बनाया। यहां अनुकरण का अर्थ है नकल करना या हुबहू। भले ही बढ़ई मूल आदर्श पलंग से परिचित नहीं था किंतु उसने पलंग की परिकल्पना करके उसकी अनुकृति की और अन्य बढ़ई ने भी ऐसा ही किया अर्थात जो सत्य था वह है वह 3 गुना दूर हो गया। इसलिए काव्य अनुकृति की अनुकृति है। जब काव्य पाठकों तक पहुंचता है तो वह सच से बहुत दूर हो जाता है।
- काव्य सिद्धांत के मुख्य बिंदु
- प्लेटो अनुकरण का समर्थन करते थे।
- कविता की रचना अज्ञान से होती है जो वास्तविकता से बहुत दूर होती है।
- वास्तव में काव्य मनोरंजन विरोधी होना चाहिए एवं मूल अर्थों से परिपूर्ण होना चाहिए।
- काव्य का मौलिक स्वरूप होना चाहिए
- अगर काव्य में कोई भाव स्पष्ट है तो उस भाव की उत्पत्ति का वर्णन होना चाहिए जिससे पाठकों को मूल कविता का भाव प्राप्त हो।
Nice 🙏🙏
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