सुकरात की जीवनी और शिक्षा,सुकरात की शिक्षण पद्धति,डायलेक्टिक विधि

  सुकरात की जीवनी और शिक्षा, दर्शन

 सुकरात की जीवनी

सुकरात कौन थे

  • महात्मा सुकरात का जन्म यूनान के एथेंस शहर में लगभग 469 ईसा पूर्व में हुआ।
  •  उनका परिवार साधारण पूर्ण जीवन व्यतीत करता था उनके पिता सोफरोनिक्स जो कि पत्थर काटने का काम करते थे। एवं उनकी मां का नाम फिनारेटी था।
  • तत्कालीन एथेंस की शिक्षा प्रणाली के अनुसार सुकरात ने शिक्षा प्राप्त की। सुकरात को अध्ययन करने का बेहद शौक था। इसलिए उन्होंने प्राचीन पुस्तकों, दार्शनिक ग्रंथ और महाकाव्यों का अध्ययन किया।
  •  उस समय उन्होंने गणित विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र आदि विषय के बारे में सामान्य जानकारी प्राप्त की। 
  • सामान्य परिवार में जन्मे होने के बावजूद उन्हें ना खाने की चिंता थी और ना ही कमाने की। 
  • इस दशा से चिंतित होकर उनके माता-पिता ने यह सोचा कि सुकरात की शादी करा दी जाए जिससे वह अपनी जिम्मेदारी समझेगे तथा उनकी शादी जनथीपी नामक सुंदर कन्या से करा दी गई।
  •  लेकिन उनका गृहस्थ जीवन सुख मय नहीं रहा और नाही उन में कोई फर्क पड़ा। वे अपना अधिकांश समय बाहरी लोगों से बातचीत, तर्क वितर्क, सवाल जवाब करके व्यतीत करते थे। यहां तक कि उन्हें अपनी जीविका की कोई परवाह नहीं थी।
  •  सुकरात सत्य के सच्चे उपासक थे इसलिए उन्होंने तर्क वितर्क करते हुए सत्य की खोज में 40 वर्ष व्यतीत कर चुके थे। 
सुकरात एक कुशल सैनिक के रूप में
  • सुकरात एक उम्दा सैनिक थे तथा उन्हें सैनिक की भांति अपने देश की ओर से पोट डिया के युद्ध में जाना पड़ा। 
  • इस युद्ध में सैनिकों को भयंकर कष्ट का सामना करना पड़ा क्योंकि उस समय बर्फीली परत बिछी हुई थी जिससे बर्फीली और सर्द हवाएं सैनिकों की भूख को जमा रही थी। इस समय सभी सैनिक थर थर कांप रहे थे किंतु उसी समय एक व्यक्ति डटकर खड़ा हुआ था जिसे ना तो भूख और प्यास की चिंता थी और ना ही कड़कती ठंड की। 
  • वह और कोई नहीं बल्कि सुकरात थे। पोटलिया के युद्ध के उपरांत उन्हें एक और युद्ध में जाना पड़ा जिसे यूनान के इतिहास पेलोपोनेसियन के युद्ध के नाम से जाना जाता है यह युद्ध स्पार्टा और एथेंस के मध्य हुआ।
  • सुकरात का वास्तविक युद्ध तलवार से नहीं बल्कि उनकी वाणी से होता था। वह तर्क वितर्क करने में बहुत माहिर थे और वे बिना तर्क की बात को मानने से इंकार कर देते थे। सुकरात का स्वभाव ऎसा था कि वे सब के पास जाकर प्रश्न करना आरंभ कर देते थे। 
  • वह अक्सर अपने शिष्यों से प्रश्न करते और कहते जब तक आप स्वयं से सवाल या प्रश्न नहीं करेंगे तब तक आप जवाब नहीं पाएंगे।
  • उनका मानना था कि स्वयं से प्रश्न करो तुम्हें उत्तर अवश्य प्राप्त होगा। फिर सुकरात अंत में उन प्रश्नों को विस्तार से समझाते थे। इस तरह सुकरात में अपने 63 वर्ष व्यतीत कर लिए। 
  • इसी दौरान एक ऐसी घटना घटित हुई जिसमें सुकरात के प्राण संकट में आ गए। बात 406 ईसा पूर्व की है जब ग्रीस के जहाजी बेड़े, शत्रु को परास्त करके वापस लौट रहे थे उसी समय अचानक से इटालियन पेनिनसुला में तूफान आ जाता है जिससे बहुत से सैनिक तूफान में बह कर मर जाते हैं तथा यूनानी सेनापति अपने मरे हुए सैनिकों की जानकारी का पता नहीं लगा पाते। 
  • और यह खबर जब ग्रीस की राजधानी एथेंस तक पहुंच जाती है तो सारी प्रजा दुखी होकर अधिक क्रोधित हो जाती है।
  •  इस प्रकार युद्ध में सम्मिलित आठ प्रमुख सेनापति यानी सरदारों के खिलाफ वोटिंग करके एक मुकदमा चलाया जाता है। इस विषय पर चर्चा होती है और 8 सेनापति सरदारों के खिलाफ आरोप लगाया जाता है कि सरदारों ने अपना कार्य कर्तव्य पूर्ण नहीं किया। इसलिए हम युद्ध जीतने के बावजूद हमें हार जैसा प्रतिफल प्राप्त हुआ। और हमारे काफी सैनिक मारे गए।
  • सुकरात उस समय सभा के सदस्य थे और सभापति को अपिस्ता कहा जाता था। अपिस्ता दिन प्रतिदिन के लिए छोटी बड़ी सभाओं का प्रमुख होता था। जिस दिन यह मुकदमा पेश किया गया उस दिन संयोगवश सुकरात सभापति यानी अपिस्ता थे। 
  • इस मुकदमे पर दिया गया प्रस्ताव नियम के विरुद्ध था इसलिए सुकरात ने अकेले सभा में इस प्रस्ताव का विरोध किया। इससे जनता बहुत ही क्रोधित हो उठी।किंतु निष्पक्ष न्याय दिलाने के लिए कोई परवाह किए बिना सुकरात ने सेनापतियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और सभा स्थगित कर दी गई।
  •  परंतु यह फैसला उसी दिन तक माननीय रहा। अगले दिन नया सदस्य अपिस्ता बना जिसने आठो सेनापति सरदारों को अपराधी घोषित कर उन्हें मृत्युदंड देने का प्रस्ताव पारित किया। 
  • अब सुकरात सबकी नजरों में आ गए थे एवं उनके खिलाफ साजिश रचे जाने लगी क्योंकि वह लोगों को अपनी शिक्षा की तर्क वितर्क शक्ति से उनमें चेतना का उत्पन्न कर देते थे और इससे उन्होंने युवक वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित किया। इसी कारण से युवकों को सुकरात के प्रति बहुत ही प्रेम और सम्मान था। 

सुकरात पर कौन से आरोप लगे

  • लेकिन उनके विरोधियों को यह प्रेम कुछ रास ना आया और वे सुकरात से अधिक घृणा करने लगे। अंत तक वह साजिश और षड्यंत्र का शिकार बन गए। जिससे उनके खिलाफ तरह-तरह के आरोप लगाए गए। तथा उन्हें अदालत में पेश करके देशद्रोही का आरोप लगाया

सुकरात पर कौन से तीन आरोप लगे थे?

  • सुकरात एथेंस राष्ट्र के देवताओं का अपमान करते हैं
  • उन्होंने एथेंस के नव युवकों को बिगाड़ दिया है
  • वह अपने नए देवताओं को मानते हैं जो उनके द्वारा गढ़े गए हैं

  • सुकरात ने विष का प्याला क्यों पिया था

  • इन मुख्य तीन आरोपों के परिणाम स्वरूप अदालत ने फैसला सुनाया कि सुकरात अपना शिक्षण छोड़ दें या वह एथेंस को छोड़कर और कहीं चले जाएं या फिर वह मृत्युदंड को स्वीकार कर ले।
  • किंतु सुकरात को प्रथम दो शर्तें मंजूर नहीं थी इसलिए उन्होंने कहा था मैं मृत्युदंड से नहीं डरता किंतु अधर्म से डरता हूं और उन्होंने तीसरा रास्ता अपनाकर विष का प्याला पी लिया इस तरह 70 वर्ष की अवस्था में महान दार्शनिक सुकरात पंचतत्व में विलीन हो गए।

प्री सोक्रेट्स फिलॉस्फर कौन थे

  • फिलॉस्फी अप्रोच को सुकरात से पहले अपनाने वाले फिलॉसफर मौजूद थे उन्हें प्री सोक्रेट्स फिलॉस्फर कहते हैं। इन विचारको में मिलेट्स, हेरेक्लिटस, पाइथागोरस आदि थे। 
  • यह मुख्य रूप से 2 तरह के प्रश्न करते थे पहला यह वह जानना चाहते थे कि कोई भी वस्तु या पदार्थ किस किस से मिलकर बना है?जबकि दूसरे प्रकार के प्रश्न में प्रकृति में हुई परिवर्तन को समझना चाहते थे? 
  • तथा परिवर्तनशील प्रकृति के पीछे कुछ ऐसी चीजें हैं जो वास्तविक रूप से स्थिर है। किंतु उन्हें हम देख नहीं पा रहे हैं। इन प्रश्नों को लेकर विचारधारा दो भागों में बैठ गई।
  •  प्रथम जिसके अनुसार परिवर्तन ही प्रकृति का नियम माना गया है तथा इस नियम में वह मानते हैं कि इस प्रकृति के पीछे कोई नियम और सिद्धांत छिपे हुए नहीं है। इसको अपनाने वाके हेरिक्लिटस थे। 
  • दूसरा वर्ग यह सोचता था कि इस परिवर्तन से प्रकृति में कुछ नियम या तत्व छुपे हुए जिनको हमें जानना है ऐसे विचार को पर्मेनिडिस और पाइथागोरस ने दिया।

वेस्टर्न फिलासफी के संस्थापक और पश्चिमी संस्कृति के प्रथम दार्शनिक

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  • पांचवी शताब्दी में अभूतपूर्व परिवर्तन होता है जिसमें विचारक सृष्टि की रचना कैसे हुई, कब हुई, ब्रह्मांड क्या आदि प्रश्नों को लेकर औचित्य नहीं मानते क्योंकि इससे मानव जाति की आवश्यकताओं और समस्याओं का निदान नहीं होता।
  • और वह चाहते हैं कि वास्तव में ऐसे प्रश्नों को खोजा जाना चाहिए जिससे मानवीय समस्याओं को समझ कर समाधान किया जा सके। अब ऎसा परिवर्तन हुआ है कि विचारक प्रकृति से जुड़े प्रश्नों की बजाय नैतिक प्रश्नों पर अधिक जोर देने लगे।
  • न्याय क्या है? सत्य क्या है? ज्ञान क्या है? जीवन को जीने का उत्तम तरीका ढूंढना? इत्यादि प्रश्नों को लेकर विचारधारा उत्पन्न हुई। 
  • इन सभी प्रश्नों को सबसे पहले सुकरात द्वारा पूछा गया और उनके द्वारा प्रश्नों का उत्तर दिया गया इसलिए सुकरात को वेस्टर्न फिलासफी का संस्थापक कहा जाता है।

सुकरात के विचार
  • सुकरात अपने वार्तालाप से धर्म, तर्क वितर्क आदि शैली के प्रश्न सूफी आई और नवीन दर्शकों से किया करते थे एवं वह प्रश्नों के उत्तर करने के लिए चुनौती देते थे। हेरेक्लिटस से सोफियाई बहुत अधिक प्रभावित हुए। 
  • तथा वह मानते थे कि प्रकृति परिवर्तनशील है इसलिए सार्वभौमिक सत्य, न्याय आदि परिस्थितियों और समय के सापेक्ष परिवर्तन आता है।
  • इसके विपरीत सुकरात इन विचारों को गलत मानते थे।और वह कहते थे कि यूनिवर्सल प्रिंसिपल और यूनिवर्सल ट्रुथ परिस्थिति और समय में स्थिर होते हैं। एवं उनकी परिभाषा में कोई परिवर्तन या अंतर नहीं आता। 
  • लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि आखिर यूनिवर्सल प्रिंसिपल? यूनिवर्सल ट्रुथ? आदि क्या है! और वह अपने आप को कहते थे कि मैं कुछ नहीं जानता और मुझे कुछ भी नहीं पता परंतु इस परिवर्तनशील जगत में कुछ ऐसा है जो स्थिर है और इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है तथा इन्हीं विचारों को खोजने के लिए वह प्रयत्न करते थे। कि इन प्रश्नों या सिद्धांतों को कैसे खोजा जाए। 
  • मेनों (एक पात्र) सुकरात से पूछता है! क्या हम ज्ञान को सीख या पढ़ सकते हैं? उसका जवाब देते हुए सुकरात कहते हैं नहीं! किसी भी चीज के ज्ञान को ना तो पढ़ाया जा सकता है और ना ही सीखा जा सकता है। जबकि यह हमारे अंदर मौजूद होता है। 
  • वह कहते हैं कि अपने आप को जानो, जीवन का रहस्य व्यक्ति के बाहर नहीं अपितु उसके अंदर छिपा है। जिसे व्यक्ति आत्मनिरीक्षण के द्वारा जानने का प्रयत्न कर सकता है। 
  • वैचारिक ज्ञान को आखिर कैसे बाहर निकाला जा सकता है? किसी भी चीज का आइडिया या स्वरूप होता है जो हमारे दिमाग में बना होता है। जैसे कुर्सी एक वस्तु है लेकिन यह वैचारिक नहीं है! किंतु कुर्सी का स्वरूप आइडिया होता है 
  • जैसे उसके चार पैर या चौकोर नुमा संरचना, धातु या लकड़ी की बनी आदि होती है जो हमारे मस्तिष्क को उस विषय वस्तु का आकार देती है। तथा हमारे दिमाग में स्थित वह स्वरूप या आकृति को ही कांसेप्चुअल नॉलेज या वैचारिक ज्ञान कहते हैं। भले ही आप जगत की सभी कुर्सियों को समाप्त कर दें लेकिन कुर्सी का आईडिया, रूप दिमाग से नष्ट नहीं किया जा सकता है।
डायलेक्टिक विधि से हमारे अंदर व्याप्त ज्ञान को बाहर निकाला जा सकता है। इसलिए व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा द्वारा नैतिक नियम को खोजना चाहिए। उन्होंने कहा था I know you won't believe me but the highest form of human excellence is to question oneself and others।

सुकरात की शिक्षण पद्धति

Dialectic methods in hindi 
  • सुकरात की शिक्षा पद्धति बहुत ही यूनिक थी। उनकी पद्धति का उद्देश्य सत्य को प्रस्तुत करना नहीं अपितु सत्य के अन्वेषण और खोजने पर आधारित था । 
  • वह अपने शिष्यों को सोचने और तर्क वितर्क करने की प्रेरणा देते थे। वह किसी भी स्थान पर जाकर प्रश्न करने लगते थे। जब एक स्थिति का समाधान हो जाता तो सुकरात दूसरी स्थिति प्रस्तुत कर दे देते थे। इन सभी स्थितियों में जो धारणा समस्याओं का समाधान करने में समर्थ होती उसे डायलेक्ट्स विधि कहा जाता था।
  • सामान्य प्रश्नों के आधार पर सामान्य धारणा के निरूपण करने की प्रक्रिया डायलेक्टिक विधि कहलाती है। इस विधि को अपनाकर लोग अंत में व्यापक सत्य पर पहुंचने का प्रयत्न करते थे।

© GSmphilosy : धन्यवाद

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