महात्मा गांधी का जीवन परिचय
महात्मा गांधी का जीवन परिचय
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता ने चार शादियां की थी जिसमें महात्मा गांधी पिता करमचंद गांधी की चौथी पत्नी के बेटे थे। गांधीजी समेत एक बहन थी जिसमें गांधी जी (मोहनदास) सबसे छोटे भाई थे। महात्मा गांधी की माता का नाम पुतलीबाई था वह धार्मिक और आंतरिक रूप से सशक्त महिला थी। महात्मा गांधी ने स्वयं यह मानना है कि उनके अंदर जो भी शुद्धता एवं व्यक्तित्व का विकास हुआ वह उनकी माता की वजह से था।
1887 में महात्मा गांधी ने मैट्रिक की परीक्षा में सफलता पाई और वह 4 दिसंबर 1988 को जहाज से इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए। तथा वहां उन्होंने 3 वर्ष तक रहकर कानून की शिक्षा प्राप्त की। फिर वह वापस भारत लौट आए।
गांधी जी का विचार था कि वह अपने ही देश में रहकर वकालत करें परंतु वह वकालत करने में सफल ना हो पाए क्योंकि उनके अंदर एक डर था जिसके कारण वह सभा में बोलने से कतराते थे।
अफ्रीका में गांधी जी को न्योता
गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के व्यापारी अब्दुल्ला ने मुकदमा लड़ने हेतु उन्हें न्योता भेजा। तथा वह इस अवसर को कामयाबी में बदलने हेतु 1853 में डरबन पहुंचे।भारत आने से पहले गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्ता के विरोध हेतु सत्याग्रह जैसे सफल हथियार का प्रयोग किया। वहां पर उन्होंने रस्किन की अंटू दि लास्ट तथा टॉल्सराय की the kingdom of God is within you का अध्ययन किया।
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका जाते समय कौन सी पुस्तक लिखी
हिंद स्वराज पुस्तक को गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका जाते समय यात्रा (जहाज पर) के दौरान 10 दिन की अवधि में लिखी।इस पुस्तक में उन्होंने अपनी दार्शनिक सोच को पहली बार पुस्तक हिंद स्वराज में वर्णन किया। यह पुस्तक 20 छोटे भागों में विभाजित है। जिसे गुजराती भाषा मेंं लिखा है।
पीटरमारित्जबर्ग की घटना और गांधी जी
यह घटना 7 जून 1893 मैं घटित हुई। जिसमें गांधीजी कानूनी मुकदमे के लिए प्रिटोरिया जा रहे थे। तभी एक स्वेत व्यक्ति ने गांधी जी को प्रथम श्रेणी ट्रेन में सफर करने के लिए आपत्ति जताई। गांधीजी ने स्वेत व्यक्ति को शांति पूर्वक बताया कि उनके पास प्रथम श्रेणी का आरक्षित टिकट था। ट्रेन पीटरमैरिट्सबर्ग पहुंचने वाली थी। तभी उन्हें उनके सामान के साथ ट्रेन से बाहर फेंक दिया। पीटरमैरिट्सबर्ग में उस समय ठंड का मौसम था। तथा गांधी जी को पूरी रात वेटिंग रूम में गुजारनी पड़ी। इस घटना से वह बहुत ही दुखी हुए। तथा उन्हें दक्षिण अफ्रीका में इस अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ा।
भारतीय प्रवासी दिवस
गांधीजी 9 जून 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे इस उपलक्ष्य में भारतीय प्रवासी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की संकल्पना एल एम सिंघवी ने दी। जिसके परिणाम स्वरूप 9 जनवरी 2003 से इस दिवस को मनाया जा रहा हैं।
भारत में लौटने के पश्चात महात्मा गांधी ने 1947 तक भारतीय राजनीति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। तथा 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी।
गांधी के चिंतन पर प्रभाव
महात्मा गांधी अपने बचपन से ही श्रवण कुमार, राजा हरिश्चंद्र एवं महाभारत, रामायण जैसी पौराणिक कथाओं से भली भति परिचित थे। जिससे उनके व्यक्तित्व में भारतीय संस्कृति के मूल्य व्याप्त थे।इसके अलावा भी इंग्लैंड, अफ्रीका गए जहां वह विभिन्न धर्मों के व्यक्तियों के संपर्क में आए। यानी कि उनके जीवन में पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों सभ्यताओं का प्रभाव देखा जा सकता है।
पूर्वी प्रभाव
महात्मा गांधी विशेष रूप से वैष्णव धर्म से बहुत अधिक प्रभावित हुई है वे हिंदू धर्म के साथ साथ जैन एवं बौद्ध धर्म के विचारों से बहुत प्रभावित हुये। उन्होंने सत्य एवं अहिंसा पर अधिक बल दिया। वह व्यक्तिगत रूप से गोपाल कृष्ण गोखले से प्रभावित होकर उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बनाया।
पश्चिमी प्रभाव
इंग्लैंड और अफ्रीका गए जहां पर उन्होंने उन सभ्यताओं मे रहकर उनके विचारों का अनुभव किया। और स्वयं को ढाला। पश्चिमी सभ्यताओं में ईसाई, यहूदी और मुस्लिम आदि धर्मो के विचारों को जाना। वह पश्चिमी विचारको से भी अधिक प्रभावित हुए. जिसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक सत्य के साथ मेरे प्रयोग में किया है। जिनमें रूसी विचारक टोलसराय बुक the kingdom of God is within you, रस्किन प्रमुख हैं
गांधी जी के चिंतन का महत्व
बीसवीं शताब्दी में महात्मा गांधी सबसे महत्वपूर्ण विचारको में से एक थे। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में राजनीति का विरोध करने के लिए सत्याग्रह की खोज की तथा इसका प्रयोग भारत को स्वतंत्रता दिलाने में किया। गांधी आधुनिक समाज में व्याप्त अवगुणों से परिचित कराकर उन्हें दूर करना चाहते थे। वह मनुष्य में नैतिकता को सबसे महत्वपूर्ण आधार मानते है। वह चाहते हैं कि विकास का आधार केवल मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हो, ना कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन। यह उनका पर्यावरणीय विचार था। वे समाज में न्याय की स्थापना के लिए सत्य एवं अहिंसा जैसे साधन का उपयोग करते हैं। वर्ष 2006 में आई फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई में गांधीवादी विचारधारा प्रदर्शित किया है।
गांधीवादी प्रविधि
गांधी का विश्वास साधनो की पवित्रता से था।वह अच्छे परिणामों के लिए नैतिक साधनों का उपयोग आवश्यक मानते थे।वे ऐसे साधन का निर्माण चाहते थे। जिसके पहिए सत्य एवं अहिंसा पर टिके हो। गांधीवादी प्रविधि के तीन महत्वपूर्ण स्तंभ सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह है।
सत्य
सत्य ही जीवन का आधारभूत सिद्धांत है। यह गांधी दर्शन का परम लक्ष्य है। उनके अनुसार सत्य के दो रूप होते है प्रथम सापेक्ष सत्य इसका साक्षात्कार मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार करता है। जबकि सत्य का दूसरा रूप में अपेक्षित है जो पूर्ण है सर्वोपरि है जो हमेशा असीमित काल तक बना रहेगा। गांधी जी सत्य को ईश्वर के अर्थ में अपनाते हैं उनका विचार था ईश्वर ही वास्तविक सत्य है। इसलिए वह कहते हैं सत्य ही ईश्वर है। परंतु वह यह भी मानते हैं कि पूर्ण सत्य का साक्षात्कार इस नश्वर शरीर से नहीं किया जा सकता। इसे केवल मन, वचन तथा कर्म की प्रतिबद्धता द्वारा व्यवहारिक नीतियों को अपनाकर किया जा सकता है।
सत्य शब्द की उत्पत्ति
सत्य शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द सत् से हुई है जिसका अर्थ चेतना का अस्तित्व है। गांधीजी के अनुसार ब्रह्मांड में चलने वाले नियम को सत्य कहते हैं। सत्य सदेव बदलाव मे भी अपरिवर्तनशील होता है यानी सत्य एक सार्वभौमिक सिद्धांत है
गांधी जी के सत्य संबंधी विचार
गांधीजी के अनुसार सत्य दर्शनशास्त्र की विषय वस्तु है। जिसमे। विचारक दार्शनिक प्रश्नों की खोज करते हैं। जैसे सत्य क्या है सत्य स्वरूप क्या है सत्य का आधार क्या है इत्यादि।
गांधी जी के जीवन में सत्य के बारे में एक घटना से प्रमाण मिलता है। एक बार जब बेल आत्मकथा लिखने का निर्णय कर रही थी तब एक साथी ने गांधी से पूछा कि आप आत्मकथा को क्यों लिखना चाहते हैं यह तो पश्चिमी सभ्यता की प्रथा है यह पूर्वी देशों में नहीं लिखी जाती। आप लिखोगे क्या इत्यादि प्रश्न किए। लेकिन गांधीजी ने विनम्रता पुणे जवाब दिया मैं आत्मकथा नहीं लिख रहा बल्कि में तो मेरे जीवन में घटित हुए सत्य के साथ मेरे प्रयोग का वर्णन कर रहा हूं।
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