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महावीर के पंचमहाव्रत सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?

महावीर के पंचमहाव्रत सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए? महावीर स्वामी ने मोक्ष की प्राप्ति, नैतिक जीवन एवं सम्यक चरित्र हेतु पंचमहाव्रत सिद्धांत दिए।   1.  अहिंसा जैन धर्म की प्रमुख शिक्षा। मन, वचन, कर्म से हिंसा न करना। 2. सत्य सत्य बोलना, असत्य को त्यागना। सत्य बोलते समय 5 बातों का ध्यान रखना। विचार, क्रोध, लोभ, हंसी, भय। 3. अस्तेय चोरी न करना। बिना अनुमति के वस्तु ग्रहण न करना। बिना आज्ञा के किसी घर में प्रवेश न करना। 4. अपरिग्रह आवश्यकता से अधिक धन संचय न करना  5. ब्रह्मचर्य  वासनाओं से दूर रहना। ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए पांच बातों का ध्यान देना। नारी से बात, उसका दर्शन, उससे अतरंग संबंध,उसका समीप्  ब्रम्हचर्य के बाधक है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में क्या अंतर हैं?

चक्रवात क्या है ? महासागरों में पवन की परिवर्तनशीलता व अस्थिरता से केन्द्र में, निम्न वायुदाब तथा बाह्य क्षेत्र में, उच्च वायुदाब बनता है चक्रवात कहलाता है। चक्रवात के प्रकार 1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात  इनकी उत्पत्ति ध्रुवीय क्षेत्रों में, ध्रुवीय वाताग्र यानि दो विपरीत गुणों वाली वायु राशि ( गर्म व ठंडी ) जलधाराओं के मिलने से होती है। इसके केन्द्र में निम्न वायुदाब, जबकि बाहर उच्च वायुदाब होता है। इनकी उत्पत्ति मध्य अक्षांश के दोनो गोलार्द्ध में 35 से 65॰ के मध्य होती है। एक आदर्श चक्रवात का विकास 6 क्रमिक चक्र अवस्था में होता है। जिसका व्यास 1950km होता है। 2. उष्णकटिबंधीय चक्रवात उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवात को उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। इनकी उत्पत्ति कर्क व मकर रेखा के मध्य होती है। वह स्थान जहां उष्णकटिबंधीय चक्रवात तट को पार कर जमीन तक पहुंच जाते उसे चक्रवात का लैंड फाल कहते हैं।  भूमध्य रेखा के समीप दोनो गोलार्द्ध की व्यापारिक पवने मिलती हैं, वहा निम्न वायुदाब का विकास होता है, यह क्षेत्र ITCZ कहलाता हैं। उष्णक...

अरस्तू का दर्शन क्या है,अरस्तु के चार कारण,Four cardinal of Aristotle

अरस्तू का दर्शन क्या है?  अरस्तु, प्लेटों के शिष्य थे उन्होंने विचारों को भौतिकी के बाद लिखा , इसलिए अरस्तू के दर्शन को मेटाफिशक्स की संज्ञा दी गई। अरस्तु के दर्शन का सम्बध प्रज्ञा के था, न कि साधारण ज्ञान से।  उन्होंने विश्व की सम्यक रूपेण व्याख्या के लिए कारणता का सिद्धांत दिया। वह कारणता के सिद्धांत का प्रयोग व्यापक अर्थ में करते हुऐ, वैश्विक पदार्थो के अस्तित्व, उत्पत्ति, उद्देश्य तथा लक्ष्य की व्याख्या करते है। अरस्तु के चार कारण है। Four cardinal virtues of Aristotle in hindi उपादान कारण (मैटेरियल कॉस्ट) - निर्माण किससे हुआ? जैसे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी धातु से निर्मित। निर्मित कारण (एफिसिंट कॉस्ट) - निर्माण किसने किया?  मूर्तिकार, मजदूर । स्वरूप कारण (फॉर्मल कॉस्ट) - कार्य क्या है? अलंकृत होना। लक्ष्य या प्रयोजन कारण(फाइनल कॉस्ट) -  लक्ष्य क्या है? एकता का प्रतीक।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थें, भारत के राष्ट्रपति की सूची , राष्ट्रपति की सूची

भारत के राष्ट्रपति की सूची भारत के पहले राष्ट्रपति कौन थे? भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद थे वह दो कार्यकाल तक पद पर रहे एकमात्र राष्ट्रपति, जिनका सबसे लम्बा कार्यकाल रहा है। 1934 में बॉम्बे सत्र में राजेंद्र प्रसाद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। वह दूसरी बार अध्यक्ष बने जब सुभाष चंद्र बोस ने 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन, में इस्तीफा दे दिया । दो कार्यकाल तक पद संभालने वाले भारत के एकमात्र राष्ट्रपति कौन थे? 26 जनवरी, 1950 को देश के संविधान को अंगीकार करने के साथ ही राजेंद्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति के रूप में पद पर कार्यरत हो गए थे। जो 13 मई, 1962 तक कुल मिलाकर 12 साल 107 दिन तक भारत के राष्ट्रपति रहे। भारत के सर्वाधिक कार्यकाल वाले राष्ट्रपति कौन है? राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में 26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962 तक कुल मिलाकर 12 साल 107 दिन तक भारत के राष्ट्रपति रहे, जो अब तक के सभी राष्ट्रपतियों में सबसे अधिक लम्बा कार्यकाल रहा है। लगातार दो बार बनने वाले एकमात्र राष्ट्रपति थे? Dr राजेंद्र प्रसाद 1952 और 1957 में लगातार दो ...

अरस्तु के नैतिक विचार का संक्षिप्त वर्णन करें?

अरस्तु के नैतिक विचार का संक्षिप्त वर्णन करें? अरस्तू को नीतिशास्त्र को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। जिसका उल्लेख निकोमेकेनियन एथिक्स नामक बुक से पता चलता है। अरस्तू के नैतिक विचार, सुकरात एन प्लेटो से प्रभावित है। नैतिकता का संबंध व्यक्ति के सभी कर्मो से नहीं होता, बल्कि स्वतंत्र संकल्प आधारित कर्मों पर होता है। उनके अनुसार दो प्रकार के स्वेक्छिक कर्म माने जाते है। 1. बिना दबाव के किए गए कर्म। 2.परिस्थतियों से अनभिज्ञ होने से किए गए कर्म । सद्गुण का सिद्धांत (सदगुण) -   सद्गुण मनुष्य की स्थायी अवस्था है जो कठिन परिश्रम के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। सद्गुण इसे अच्छे कर्म हैं जो विवेक और बुद्धि के साथ कर्तव्य निर्वहन एवं अच्छा आचरण में सहायक हैं। मध्यम मार्ग का सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार नैतिक सद्गुण दो अतिवादी दृष्टिकोण के बीच वांछनीय मध्य है जैसे संयम अनियंत्रित भोग और वैराग्य के बीच की स्थिति है।

शंकर का ब्रह्रा क्या है

शंकर का ब्रह्रा क्या है?  आचार्य शंकर अद्वेत वेदांत के प्रणेता थे। शंकर, "ब्रह्मा सत्यं जगत-मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः" शकर के अनुसार ब्रह्रा तत्व श्रीमांसा में एकमात्र सत्ता है। ब्रह्रा एकमात्र सत़ है संसार में ब्रह्रा ही सत्य है, जगत मिथ्या है। जीव और ब्रह्रा दो नही बल्कि अद्वेत है। अद्वेत दर्शन के अनुसार, आत्मा और ब्रह्रा को एक माना हैं। ब्रह्रा के दो रूप - निर्गुण ब्रह्रा, सगुण ब्रह्रा   शंकर के अद्वेत दर्शन में सत्ता के तीन स्तर हैं। प्रतिभाषिक सत्ता, व्यावहारिक सत्ता ,पारमार्थिक सत्ता

विवेकानंद का सामाजिक दर्शन क्या है ?

विवेकानंद का सामाजिक दर्शन क्या है ? वह आधुनिक भारत के महान धर्म गुरु एवं समाजसुधारक थे। आध्यात्मिक मानववाद- मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। सार्वभौम धर्म - सभी धर्म समान, धर्म का उद्देश्य मानव कल्याण हैं। युवा शक्ति पर बल- युवाओं को राष्ट्र शक्ति माना है। दरिद्र नारायण- दरिद्रो, दीन दुखियों की सेवा करना। कर्म योगी- व्यक्ति को क्रियाशील होना चाहिए। सामाजिक विचार- रूढ़ियों का विरोध, अस्पृश्यता, जाति , वर्णव्यवस्था विरोध, सामाजिक समानता लाना। शिक्षा संबंधी विचार- शिक्षा से व्यक्ति को स्वावलंबी बनना, नारी शिक्षा।

गुरुनानक का सामाजिक दर्शन क्या है , गुरु नानक का मुख्य दर्शन क्या है

गुरुनानक का दर्शन क्या है ? गुरुनानक खालसा धर्म के संस्थापक, कवि, समाज सुधारक थे। एक ईश्वर में विश्वास-  एक ईश्वर अस्तित्व पर जोर  सतनाम में अलौकिक शक्ति - सतनाम बुराईयो और बीमारियो का इलाज है। गुरु का महत्व- गुरु की कृपा से ही सतनाम की प्राप्ति संभव हैं।   सामाजिक कुरीतियों का विरोध- जातिप्रथा का बहिष्कार,असमानता,मूर्ति पूजा, क्रिया कर्मों का खण्डन। पांच दुश्मन- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार। गुरुनानक के दस सिद्धांत- ईश्वर एक है, कण कण मे ईश्वर है, एक ईश्वर की उपासना, उपासना करने वालो के कोई भय नहीं।

कबीर का मुख्य दर्शन क्या है ?, कबीर की 'सामाजिक चेतना' क्या है ?

कबीर की 'सामाजिक चेतना' क्या है ?  कबीर का मुख्य दर्शन क्या है ?  कबीर भक्ति काल के निर्गुण, दार्शनिक, समाज सुधारक एवं कवि थे। एकेश्वरवाद-  ईश्वर के एकाकार होने का अर्थ मानव एकता से है।  निगुर्ण उपासक- आराध्य राम को निराकार माना हैं। तर्कवाद- समाज की बुराईयों का तार्किकता से प्रहार किया।  आत्मआलोचन- 'बुरा जो देखन मे चला' से प्रहार किया। समाज सुधारक- साप्रदायिकता का विरोध जाति, सामाजिक रूढ़ी, बलि, मूर्तिपूजा का विरोध, अहिंसा का समर्थन।  गुर-का महत्व गुरु के द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति संभव । माया - माया का अर्थ अविद्या जो तृष्णा, काम, क्रोध को जन्म देती। मानवता वाद- विनम्रता, दया, समानता, एकता, बंधुत्व।

भूकंप क्या है what is earthquake

  भूकंप क्या है what is earthquake भूकंप भू पृष्ठ पर होने वाला आकस्मिक कम्पन है। भूकंप कहलाता है। पूर्व भूकंप एवं अनुकंप क्या है देखा जाए तो भूकंप के आने से पहले हल्के झटके आते हैं जिन्हें पूर्व भूकंप (foreshock)कहते हैं एवं मुख्य भूकंप के आने के बाद भी हल्के हल्के झटके महसूस होते हैं उन्हें अनुकंप या आफ्टरशॉक कहते है भूकंप आने से पहले कौन सी गैस का उत्सर्जन होता है भूकंप के आने से पहले वायुमंडल में रेडॉन गैसों की मात्रा में वृद्धि होती है और यह आने वाले भूकंप का संकेत देती है। एपिसेंटर बिंदु क्या है what is epicenter पृथ्वी का वह आंतरिक भाग जहां चट्टानों में हलचल होती है उसे भूकंप की उत्पत्ति का केंद्र सीस्मिक फोकस बिंदु कहते हैं। और इस बिंदु से ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाला कम्पन अधिकेंद्र एपिसेंटर कहलाता है तथा अधिकेंद्र पर ही सबसे पहले भूकंपीय लहरों का अनुभव किया जाता है भूकंप से कौन सी ऊर्जा निकलती है  भूकंप के दौरान जो ऊर्जा भू भाग से निकलती है उसे प्रत्यास्थ ऊर्जा इलास्टिक एनर्जी कहते हैं भूकंप को मापने वाले यंत्र रोसी फेरल स्केल मर्केली स्केल रिएक्टर स्केल भूकं...

रवीन्द्रनाथ का मानवतावाद क्या हैं?

रवीन्द्रनाथ का मानवतावाद क्या हैं?  वह मानवतावादी दार्शनिक थे। मानवतावाद, मानव मूल्यों और चिताओं पर ध्यान केन्द्रित करने वाला तार्किक दर्शन है, जिसके केन्द्र में मानव व उसकी स्व तंत्रता होनी चाहिए। मानवतावाद का प्रमुख आधार वह स्वतंत्रता को मानते है।  मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। टेगोर ने कहा मेरा धर्म मानव है। मानव की प्रतिष्ठा सबसे महत्वपूर्ण है। टैगोर जी ने मानवतावाद का आधार प्रेम, सहयोग,व सहिष्णुता को बताया।

महावीर स्वामी का स्यायवाद का सिद्धात बताइए ? स्यायवाद का सिद्धात क्या हैं?

महावीर स्वामी का स्यायवाद का सिद्धात बताइए ?  स्यायवाद जैन दर्शन के ज्ञान मीमांसा से संबधित है  स्यायवाद ज्ञान के सापेक्षता का सिद्धांत हैं जो कि अंतिम सत्य को नहीं स्वीकारता है क्योंकि इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक विचार के विभिन्न दृष्टि कोण होते हे। अतः कोई भी ज्ञान/दृष्टि, आंशिक रूप से सत्य हो सकती है, परंतु एकांतिक रूप से नहीं। इसलिए आंशिक सत्य से बचने के लिए स्वामी जी ने स्याद शब्द जोड़ने को कहा। स्याद का अर्थ शायद / संशय। स्यायवाद को ही सप्तभंगीय सिद्धांत कहा जाता हैं। स्यायवाद को अक्सर हांथी और अंधे की कहानी से समझा जाता है।

महावीर स्वामी का अनेकांतवाद सिद्धांत क्या हैं ?

महावीर स्वामी का अनेकांतवाद सिद्धांत क्या हैं ? यह सिद्धांत जैन दर्शन की तत्व मीमांसा से संबंधित है। अनेकांतवाद, वस्तु के ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत है।  इस सिद्धांत के अनुसार संसार में अनेक वस्तुए है और प्रत्येक वस्तु के अनंत गुणधर्म है तथा वस्तु के स्वरुप का ज्ञान किसी एक धर्म से होकर उसके सभी धर्मों से होता है। जैन दर्शन मानता है। कि मनुष्यों, पक्षियों, पेड़ मे ही जीव होने के साथ साथ जड़ पदार्थो मे जैसे धातु पत्थर आदि में जीव रहता है। कोई भी वस्तु एकान्त वादी नहीं है। सभी जड़ पदार्थ में भी जीव होता है इसी के आधार पर वह अहिंसा का समर्थन करते हैं।

अरस्तू का मध्यम मार्ग क्या है ? अरस्तू का गोल्डन मीन क्या है

अरस्तू का मध्यम मार्ग क्या है ?  अरस्तू ने यथार्थवादी दृष्टि कोण से प्लेटों के चिन्तन में जो संशोधन किया वह गोल्डन मीन कहा जाता हैं। मध्यम मार्ग अर्थात् दो चरम सीमाओं के बीच वांछनीय मध्य से हैं। उदाहरण कायरता साहस में कमी, साहस मध्य की स्थिति है, साहस की अधिकता से लापरवाही होती है। कमी भोग ( संयम मध्य) अधिक वैराग्य। अरस्तू के अनुसार मध्यम मार्ग का अनुसरण करने वाला जीवन सर्वश्रेष्ठ है। इसका अनुप्रयोग - शासन प्रणाली मे, शरीर के संतुलित विकास में आदि मे।

रविंद्रनाथ टैगोर का शिक्षा दर्शन क्या हैं?

रविंद्रनाथ टैगोर का शिक्षा दर्शन क्या हैं? रविंद्रनाथ टैगोर महान दार्शनिक एवं शिक्षाविद थे। शिक्षा दर्शन पर उनके विचार निम्न है शिक्षा के उद्देश्य आत्म साक्षात्कार, आत्मनिर्भरता, स्वावलंबी बनाना। व्यक्ति का सर्वागीण विकास करना। व्यक्ति का बौद्धिक व शारीरिक विकास करना। दैनिक उपयोगी की शिक्षा प्रदान करना। शिक्षा के मूल कारक मातृभाषा में शिक्षा होना।  अन्य भाषाओं को भी सीखना। स्त्री पुरुष समान शिक्षा। आवासीय शिक्षण संस्थानों की स्थापना। स्वतंत्रता, प्रेम, अनुशासन,नवाचार समकालीन शिक्षा को आलोचना हमारी शिक्षा मूल्य विहीन व निर्जीव हो गई हैं। शिक्षा अनुपयोगी है हमारी शिक्षा में रोजगार अभाव है। रविंद्र नाथ टैगोर ने अपने शिक्षण संबंधी विचारों के प्रसार हेतु 1901 में शांतिनिकेतन,1921 में विश्व भारती की स्थापना की।

प्रयोजनवाद का मूल्यांकन व्याख्या करे?

प्रयोजनवाद का मूल्यांकन  रॉस के अनुसार प्रयोजनवाद एक मानवीय दर्शन हैं जो मानता है की मानव क्रिया की अवधि में, अपने मूल्यों का निर्माण करता है और यह मानता है कि वास्तविकता हमेशा, निर्माण की अवस्था में होती है। प्रयोजनवाद शिक्षा का मुख्य आदर्श माना जाता हैं, रस्क ने प्रयोजनवाद की प्रशंसा के लिए कहा है कि प्रयोजनवाद, नवीनादर्शवाद के विकास में एक चरण मात्र है। जो हमेशा वास्तविकता का ध्यान रखता हैं। सकारात्मक पक्ष प्रयोजनवाद बच्चो को व्यवहारिक जीवन जीने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। प्रयोजनवाद एक सामाजिक शिक्षा है जो हमारे अंदर स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व जैसे गुणों का विकास करती हैं। इसमें विचारों की जगह क्रिया की अधिक महत्वता है। रस्क का मानना था कि इसने विचार को व्यवहार के अधीन बनाया हैं। प्रयोजनवाद ने शिक्षा में नवीन शिक्षा, प्रगतिशील शिक्षा, क्रिया प्रधान पाठयक्रम की बात कही। नकारात्मक पक्ष प्रयोजनवाद आध्यात्मिक गुणों की अवहेलना करके वर्तमान जगत पर अधिक महत्व मानता है। प्रयोजनवाद सत्य को परिवर्तनशील मानता है। प्रयोजनवाद पूर्व सांस्कृतिक आदर्शो और मान्यताओं को स्वीकार नहीं करता है...

अरस्तू के दासता संबंधी विचार को समझाइए,अरस्तू के दासता संबंधी विचार का मूल्यांकन कीजिए?

अरस्तू के दासता संबंधी विचार को समझाइए? अरस्तू के दासता संबंधी विचार अपनी रचना द पालिटिक्स में प्रस्तुत करते हुए, दास प्रथा का समर्थन किया है। अरस्तू तर्कविद्या में माहिर है, वे कहते हैं, प्राकृतिक रुप से व्यक्तियों के मध्य असमानता है। प्रकृति स्वामी या दास में अन्तर करना जानती है उच्च निम्न पर शासन करता है। कम बुद्धि वाले दास होते है बुद्धि एवं विवेक से युक्त स्वामी होता है। दासता का आधार प्राकृतिक हैं, न कि वैधानिक। दासता के प्रकार  स्वाभाविक दासता वैधानिक दासता  अरस्तू के दासता संबंधी विचार का मूल्यांकन कीजिए? अरस्तू के तर्क दास प्रथा  समर्थन में अरस्तु की दासता आधार  प्राकृतिक है। दासता में सामाजिक अनिवार्यता है। स्वामी व दास के हित समान है स्वामी का नैतिक स्तर उच्च होता है आलोचना किसी की शारीरिक व मानसिक रचना का विभेद करना अनुचित है अरस्तु की स्वतंत्रता व समानता की धारणा प्रतिकूल है मानवों का शोषण होना। महिलाओं को दास की श्रेणियों में रखना

प्लेटो का न्याय का सिद्धात समझाइए,न्याय के सिद्धात का मूल्यांकन कीजिए?

प्लेटो का न्याय का सिद्धात समझाइए प्लेटों ग्रंथ द  रिपब्लिक मे न्याय के सिद्धांत की व्याख्या की है  प्लेटो ने न्याय को अंतरात्मा की वस्तु माना है, न्याय मानव आत्मा का सर्वश्रेष्ठ गुण है मानव आत्मा के तीन गुण ( सुधा , साहस व विवेक ) है, इन तीनो गुणों का उचित अनुपात ही न्याय है, जब तीनो वर्ग ( उत्पादन, सैनिक, शासक वर्ग) निस्वार्थ होकर कर्तव्य का पालन करेगें तभी न्याय बना रहेगा। न्याय के सिद्धांत के प्रमुख तत्व व्यक्ति-समाज में कोई सघर्ष नहीं होना कार्यात्मक विशेषीकरण अहस्तक्षेप की नीति पारस्परिक सामजस्य न्याय के सिद्धात का मूल्यांकन कीजिए? प्लेटों के न्याय के सिद्धांत का मूल्यांकन करे? प्लेटों ग्रंथ द रिपब्लिक मे न्याय के सिद्धांत की व्याख्या की है  यह नैतिक अवधारणा है, न कि कानूनी अवधारणा। वह केवल अभिभावक वर्ग को विकसित करना चाहते हैं। जबकि उत्पादक वर्ग की उपेक्षा करते हैं। व्यक्तिगत अधिकारों की उपेक्षा करता है राज्य का अत्यधिक महत्व दिया।  शासक दार्शनिक राजा की निरंकुशता का समर्थन।  प्लेटो की न्याय संकल्पना भेदभाव पूर्ण है  कार्य विभाजन योजना अनुचित है।

कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन 1939 जबलपुर

कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन 1939 जबलपुर भारतीय राष्दीप कांग्रेस का 52 वा अधिवेशन था जिसका आयोजन 1939 में मध्यप्रदेश के त्रिपुरी में हुआ। घटना क्रम इस सम्मेलन में उम्मीदवार सुभाष चन्द्र बोस पुनःनिर्वाचित होने थे। जिनके सामने गांधी समर्थित उम्मीद‌वार पट्टाभि सीतारमैय्या थे । किंतु, पटाभि को हराकर सुभाष चंद्र बोस दोबारा अध्यक्ष के पद पर जीत गए। पट्टाभि सीतारमैया की हार को गांधी की घर बताया गया। बाद में गांधी सर्मथकों के विरोध के चलते सुभाषचन्द्र बोस ने पद से इस्तीफा दे दिया। तथा नए अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद बनाए गए।

मध्यप्रदेश के जबलपुर में झण्डा सत्याग्रह पर प्रकाश डालिए?

मध्यप्रदेश के जबलपुर में झण्डा सत्याग्रह पर प्रकाश डालिए? मध्यप्रदेश में असहयोग आंदोलन के दौरान 1923 में (8 मार्च 1923) जबलपुर में झण्डा सत्याग्रह हुआ। जबलपुर नगरपालिका में कांग्रेस को बहुमत प्राप्त था। इस खुशी से उत्साहित होकर प्रेमचंद जैन, कुशलचंद्र जैन ने नगरपालिका से यूनियन जैक उतार कर चरखा युक्त झण्डा फहरा दिया। किंतु वहां के डिप्टी गर्वनर ऑटिश ने तिरंगे को उत्तरताकर पैरों तलों कुचलवा दिया।  इसके विरोध में जबलपुर में नेतृत्वकर्ता सुंदरलाल तपस्वी, नाथूराम मोदी, लक्ष्मणसिंह चौहान, नरहरि अग्रवाल, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि ने इसके विरोध में जुलूश निकाला। पुलिस ने जुलूस में सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया । प. सुंदरलाल तपस्वी को 6 माह की सजा दी गई। बाद में इस आंदोलन का केंद्र नागपुर बना। जहा 13 April 1923 को डा. राजेन्द्र प्रसाद, सरोजनी नायडू, पं. नेहरू, सरदार पटेल ने आन्दोलन का नेतृत्व किया। अततः गोरी सरकार ने 100 स्वयं सेवकों को झंडा सहित जुलूस निकालने की अनुमति दी। 18 Aug 1923 को अनुमति मिलने के साथ ही यह आंदोलन समाप्त हो गया । झण्डा सत्याग्रह 8 मार्च 1923, जबलपुर

भोपाल रियासत की स्थापत्य कला पर संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें ?

भोपाल रियासत की स्थापत्य कला पर संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें ? भोपाल रियासत की कला एवं स्थापत्य शैली का वर्णन करें?  ताज उल मस्जिद  इसका शाब्दिक अर्थ ~ मस्जिदों का ताज है,  निर्माण ~ सिकंदर बेगम वास्तुकार ~ अल्लार खां  जामा मस्जिद से प्रेरित होकर निर्माण किया है। भोपाल तथा भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। ताजमहल निर्माण शाहजहां बेगम 1871 से 1884 सत्रह एकड़ में फैला हुआ है। भोपाल में स्थित है। कुल 8 हॉल में शीशमहल सबसे आंतरिक भाग में स्थित है। गौहर महल बड़ी झील के शौकत महल के पास भोपाल में स्थित हैं। निर्माण कुदसिया बेगम भोपाल रियासत का में निर्मित प्रथम महल है। शैली - इंडो इस्लामिक ढाई सीढ़ी मस्जिद  फतेहगढ़ किले के ऊपरी भाग के बुर्ज पर स्थित है  इस मस्जिद में इबादत खाने तक जाने के लिए ढाई सीढ़ी है ,  इसलिए इसे ढाई सीढ़ी मस्जिद कहते हैं। मोती मस्जिद  यह सफेद संगमरमर से निर्मित इमारत है। निर्माण - नबाब सिकंदर बेगम गोलघर भोपाल यह भोपाल में स्थित गोलाकार भवन हैं जिसे गुलशन- ऐ- आलम भी कहते है। निर्माण कार्य - शाहजहां बेगम शौकत महल शहर के बीच चौक बाजार में...

भोपाल रियासत में बेगमों के शासन का स्वर्णिम काल कहा जाता है?

भोपाल रियासत में बेगमों के शासन को स्वर्णिम काल क्यों कहा जाता है?  1722 में दोस्त मोहम्मद खान ने भोपाल रियासत की स्थापना की थी। रियासत में चार महिलाओं ने 1819 से 1926 तक 107 वर्ष शासन किया।   भोपाल रियासत में बेगमों के शासन को स्वर्णिम काल कहा जाता है। कुदसिया बेगम -  इनके साथ भोपाल रियासत में बेगमों के शासन का प्रारंभ हुआ। भोपाल में धार्मिक दान, सड़को, जलापूर्ति तथा हज यात्रियों के लिए ग्रह बनाए। जामा मस्जिद का निर्माण कराया।  सिकंदर बेगम -   इनके शासन को भोपाल रियासत का स्वर्णिम काल कहा जाता हैं। इन्होंने सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक सुधार किए। जिनमे मजलिस ए शूरा का गठन, टकसाल का निर्माण, आधुनिक अदालतों का गठन एवं मोती मस्जिद ,मोती महल का निर्माण किया। नबाब शाहजहा बेगम  - ( ताज उल इक़बाल की रचना की जो भोपाल के इतिहास को वर्णित करती है ) राज्य के प्रशासन को आधुनिक बनाया। शाहजहानी सिक्का चलाया।    सुल्तान जहां बेगम  - वह स्त्री शिक्षा को समर्थन करती थी। इसलिए सुल्तानिया बालिका वियालय , Alexandria  नोबेल स्कूल प्रिंस ऑफ लेडी क्लब ...